हमारे पूर्वज कान्वेंट एजुकेटेड नहीं थे, उनके पास कोई विलायती डिग्री भी नहीं थी, उन्हें अंग्रेजी भी नहीं आती थी.... लेकिन वे मस्तिष्क के रहस्यों को जानते थे | इसलिए उन्होंने मानसिक शुद्धि व स्वास्थ्य को शारीरिक शुद्धि व स्वास्थ्य से अधिक महत्व दिया | आज विज्ञान भी वही मानने लगा की मस्तिष्क में बहुत शक्ति है और भविष्य में वे केवल मस्तिष्क से विमान व अस्त्रों को संचालित कर लेंगे | उन्होंने मस्तिष्क के ही प्रयोग से शत्रुओं को नष्ट करने के उपायों पर भी कार्य शुरू कर दिया है | अर्थात कुछ समय बाद पश्चिमी वैज्ञानिक वही सब चमत्कार कर पायेंगे जो भीष्म, अर्जुन और कर्ण किया करते थे | ये लोग अदृश्य हो सकने वाले वस्त्र भी सैनिकों के लिए बनाने में आंशिक सफलता प्राप्त कर चुके हैं और भविष्य में सैनिक यदि हमारी सीमा में घुसेंगे तो हम उन्हें देख भी नहीं पाएंगे....
अब वैज्ञानिक मस्तिष्क के रहस्यों और उसकी अलौकिक शक्तियों पर खोज करना शुरू कर चुके हैं | लेकिन हम अभी भी अंग्रेजी बोलकर खुद को अक्लमंद समझ रहें हैं |
एक साधारण सी बात लोगों को समझ में नहीं आती की कैसे मस्तिष्क हमारे पूरे व्यक्तित्व को बदलकर रख देता है ? उदाहरण के लिए शाकाहारी माँसाहारी विचारधारा को ही लें | जो शाकाहारी हैं वे दिन भर मांसाहारियों को कोसते फिरते हैं | माँसाहारी लोगों में इतनी तो मानवीयता होती है कि वे कत्लगाहों पर या अपने समूह में ही किसी जीव की हत्या या चीर-फाड़ करते हैं, लेकिन ये तथाकथित शाकाहारी लोग वहाँ जाकर तस्वीरें लेकर आते हैं और आपके घर तक पहुँचाते हैं | आप सुबह सुबह उठकर सोशल मीडिया खोलते हैं और वह वीभत्स दृश्य देखकर दिमाग खराब हो जाता है | सबसे पहले उस व्यक्ति को अनफ्रेंड करते हैं हैं जिसने उसे शेयर किया ताकि भविष्य में ऐसे पोस्ट आपको देखने न मिलें | और फिर कोसते हैं उन लोगों को जिसने ऐसे कृत्य किये | क्योंकि आपके मस्तिष्क में जो प्रोग्रामिंग हैं वह वैसी ही है की आप उसे सहन नहीं कर पायेंगे |
लेकिन जो माँसाहारी हैं उनके मस्तिष्क में प्रोग्रामिंग है कि या कोई गलत कार्य नहीं है | इसलिए माँसाहारी तो एंड्राइड और विन्डोज़ सॉफ्टवेर बना रहें हैं निश्चिन्त होकर और हम बुचडखाने की तस्वीरें शेयर करके राष्ट्र की सेवा कर रहें हैं | वे भारत में व्यापार जमाने आ रहें हैं, और हम अपने ही देश में व्यापार नहीं कर पा रहे | वे हमारे देश से करोड़ों कमा कर ले जा रहें है और हम यहाँ हिन्दू-मुस्लिम, हिन्दू-मुस्लिम खेल रहें हैं | भिखारी बने बैठे भीख मांग रहें हैं कभी तो कभी आरक्षण, जाति या अल्पसंख्यक के नाम झोली फैलाए खड़े हुए हैं |
हमारा मस्तिष्क वही स्वीकार करता है, जिसे हम बार बार रिपीट करते हैं | यदि हम ऐसे दृश्यों और मित्रों से स्वयं को अलग कर लें जो नकारात्मक पोस्ट या विचारों की प्रधानता लिए हुए हैं और सकारात्मक सोच देने में या स्वीकारने में असमर्थ है, तो आप पायेंगे कि कुछ ही समय में आप की मानसिक व आर्थिक स्थिति बदलनी शुरू हो जाएगी | क्योंकि नकारात्मक विचारों से मुक्त होते ही मस्तिष्क सकारत्मक विचारों का सृजन शुरू कर देता है | और यही प्राकृतिक नियम है कि मनुष्य को आभाव में नहीं समृद्धि व सुख की ओर गति करना है | नकारात्मक उर्जा आपको पीछे की ओर धकेलती है, जबकि सकारात्मक उर्जा स्वस्फूर्त होती है और आप स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर गति करने लगते हैं | -विशुद्ध चैतन्य