बिखर गया तू होकर मेरा अपना
बना रहा सहभागी हर पल हर दिन
और बना रहा मूक दर्सक होकर तेरा मैं अपना
हू अपराधी , हू हत्यारा यही सत्य है, या अर्ध सत्य है
करू क्या बिमर्श इसका क्यूकी बिखर गया तू होकर मेरा अपना!
पीस गया ,कुचल गया तू खोटे और झूते रिश्तो की चक्की पे
छोड़ गया पद चिन्ह् मेरे मॅन मस्तिक पे तू अपने होने का
क्यूकी ,तू तो था मेरा अपना !