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मेरी मां की श्रृंगारदानी

14 मार्च 2022

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मेरी यह रचना मेरी मां के संघर्षों को समर्पित है।

( रचना को कॉपी करना अथवा किसी भी प्रकार से इसे क्षति पहुंचाना कानूनन अपराध होगा। )

       ●◆मेरी मां की श्रृंगारदानी◆●

एक छोटी सी गत्ते की पेटी,

जिसमें रखे होते थे...

एसीलाक, डाइक्लोविन 

और कुछ दवायें मोच की,

श्रृंगार के नाम पर उसमें था 

मुडा़ हुआ बिन्दी का एक पत्ता

और कुछ टूटी ड़िबिया सिन्दूर की।

साथ ही थे कागज के कुछ टुकड़े

और सिलवटों से भरी पर्चियां,

जिन्हें मेरी माँ अक्सर...

सफ़ाई करते हुये सम्भाल लेती थी।

उनके लिये हर कागज़ जरूरी था,

क्योंकि उन्हे नहीं आता है 

इन खिंचे हुए अक्षरों को पढ़ना।

मैं जब पूछता कि, 

तुम्हे क्या पसंद है ? 

तब मां कहीं गुम सी हो जाती...

उन्हें याद आती थी हर पल

तेरह साल की एक लड़की 

जिससे उसका बचपन छीनकर 

समाज ने बांध दिया था...

ससुराल की बेड़ियां।

तब उस उम्र में वो, 

ये तक नहीं जानती थीं कि,

वो कौन हैं... 

और बज़ाय अपने घर के

वह यहां ससुराल नाम के,

ज़गह पर क्यों है?

तब उसके श्रृंगार के साधन थे...

गोबर के थेपले,

मिट्टी सने बर्तन और काली धूल।

जो लकड़ी के चूल्हे से निकल

सीधा पहुंचती उनके चेहरे पर। 

लाल सुहाग के नाम पर 

उसके पास था कुछ बूंद खून का...

जो अक्सर घास काटते हुये,

उसकी उंगलियां कट जाने पर 

निकला करता था।

समय बीता...

मेहनत और भाग्य ने साथ दिया।

अब वह थीं,

एक वरिष्ठ अधिकारी की पत्नी।

लेकिन....

उनका श्रृंगार मुझे 

अब भी फीका लगता है।

अब मेरी समझ में आया कि,

उनके असली श्रृंगार के साधन तो 

उनके प्यारे बच्चे थे...

अपने बच्चों के नाम 

अखबार की कतरनों में जब सुनतीं,

तो उनका चेहरा चमक उठता था।

इतना ज्यादा कि,

दुनिया का हर श्रृंगार ,

उनके सामने फीका लगता था।

वह जब देखती,

अपने बच्चों की तरक्की

तब वो खिल जाती फूल सी...

और अब मेरा लक्ष्य है,

उनके माथे की वह बिन्दी बनना

जिसे लगाकर उनका चेहरा 

चमकता रहे अंतिम क्षण तक।

हे ईश्वर!

मुझे इतनी शक्ति देना कि 

मैं उनके श्रृंगार को अमर कर सकूं।।

माँ! 🛐🌺

तुम्हारा विकाश्री।

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इतनी सुंदर रचना के लिए क्या ही कहूं....मन भावुक हो गया। मेरी स्मृति में मेरी माँ चली आई। बेहतरीन लिखा है आपने। बहुत खूब श्री।🙏💐💐🙏

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