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मैं दिल्ली की रहने वाली हूं और एक गृहणी हूं| कविता पढ़ने और लिखने का शौक रखती हूं| कबीर,ओशो और गुलज़ार से बहुत प्रभावित हूं| मन के उदगार को भावों में पिरोने का प्रयास लिए हूं।

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मनमीत

मनमीत

इस पुस्तक के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि जीवन मूल्यों में सार्थक और अल्प शब्दों का प्रयोग करके अच्छे विचार प्रस्तुत किए जा सकते हैं | मेरा यह प्रथम संकलन समर्पित है उसको जिसके सानिध्य में रह कुछ मोती पाए हैं | आशा करती हूं कि आपका सहय

21 common.readCount
81 common.articles
common.personBought

ईबुक:

₹ 42/-

प्रिंट बुक:

166/-

मनमीत

मनमीत

इस पुस्तक के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि जीवन मूल्यों में सार्थक और अल्प शब्दों का प्रयोग करके अच्छे विचार प्रस्तुत किए जा सकते हैं | मेरा यह प्रथम संकलन समर्पित है उसको जिसके सानिध्य में रह कुछ मोती पाए हैं | आशा करती हूं कि आपका सहय

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प्रकृति

31 मार्च 2022
1
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”प्रकृति घने जंगलों सी निष्प्राणहर साँस में जीवित दिखाई देती है अपने अभ्यारण में व्याप्त संचरित सी हर परिस्थिति में क्षणभंगुर जीवन की सतत प्रक्रिया का आह्वान देती है तुम्हारी रस छत्रछाया को आतुर

दायरा

31 मार्च 2022
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”दायरा विशालता समुद्र सी ओढ़ किनारे से समेट लेता है असंख्य छीटों की वेदना बाहर कर अंदर मोती समेट लेता है कभी लक्ष्मण-रेखा को पार कर जब भी अट्टाहस झेलता है एक कड़वा अनुभव समझ उम्र में जोड़ लेता ह

मौन

31 मार्च 2022
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”मौन स्वयं अपनी भाषा  बिन बोले अपना परिचय  गूढ़ रहस्यों में कह जाता है।  शब्द पर आधिपत्य कर  अपनी मुहर लगा जाता है।  विराट शब्दावली को झंकृत कर  एक मूक सा उत्तर दे जाता है।  कहे-अनकहे शब्दों के

समझ

31 मार्च 2022
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”समझ अथाह समुद्र सी जिसका कोई छोर नहीं आ जाए तो परिपक्व नहीं तो व्यक्तिगत नज़र आती नहीं कहीं उम्र की गोद में भी दिखती नहीं अपने पैमाने लिए खुद ही हाँकती है। विचारों में बँट आश्रय सी भटकती वक

फ़रिश्ते

31 मार्च 2022
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”एक शाम सा फैल जाता है काजल आँखों में बिखर” {183}  ”फ़रिश्ते भी कदम चूमते होगे जब वो मुस्कुराते हुए पार आता है” {184} 

क्षणभंगुर

31 मार्च 2022
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”एक पड़ाव सा जब भी आया  गन्तव्य सामने कर” {180}   ”जीवन क्षणभंगुर था पिपासा गहरे  सागर सी लिए” {181}  ”प्रेम का वो अतिक्रमण कर रहा था पहल एक कर” {182}  

शब-ए-रात

31 मार्च 2022
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”गहराई में उतर रहा था समुद्र एक उलीच” {177} ”शब-ए-रात सा (पूर्णिमा का चाँद) मिलता है कसौटी पर खरा उतर” {178}  ”सूरज रोज़ उगता है दास्तां रात की सुन” {179}  

सिलवट

31 मार्च 2022
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”एक इंतजार का ही फर्क था तेरे जाने और मेरे ठहर जाने में” {174}  ”समुद्र का वेग था वो थम लहरों में” {175}  ”एक सिलवट सी पड़ जाती है रात जब भी उठ कर आती है” {176} 

लिबाज़

31 मार्च 2022
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”खरपतवार सा उग जाता है जब भी  उपजाऊ कर छोड़ा है” {171}  ”खाली लिबाज़ सा मिलता है शब्द अपने भर” {172}  ”खाव्हिशें अब भी आवाज़ देती है उम्र का रास्ता रोक” {173} 

पशेमा

31 मार्च 2022
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”बूझते दिए बता रहे थे एक रात जलाई है फ़ना कर” {168}   ”एक हाथ से जब भी पकडा़ है दूसरा छूट” {169}   ”वो आज भी कुछ पशेमा था बात का रूख बदल” {170}  

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