नीम का पेड़ बोलु या सुकून एक ही बात है। मेरे लिए वह पेड़ महज एक पेड़ नही था। उससे मेरा रिश्ता जैसे एक माँ का उसके बच्चे से या उससे भी ज्यादा। मेरी सुबह उसी से होती थी और शाम भी उसी के नीचे। जबतक वो मेरे साथ था मुझे किसी दोस्त की जरूरत ही नहीं थी जहा मेरे साथ के बच्चे खिलौनों के साथ खेलते थे। वही मैं बस उसी के साथ मेरी पूरा दिन खत्म हो जाता था। सुबह स्कुल जाने से पहले उसके नीचे खेल कर जाते थे। और शाम को आते ही फिर उसके नीचे और मानो कि वो मेरा ही इंतजार कर रहा हो कि कब मैं आकर उससे लिपट जाऊँ और उससे अपने पूरे स्कुल की बाते बताऊ। और वो शांत होकर हल्का हल्का सिर हिला कर मेरी बातों को सुनती थी जैसा कि कोई माँ अपने बच्चो कि बात को सुनाती है। लेकिन एक सुबह तो मेरी हुई उससे साथ एक मेरा सूरज तो निकला उसके साथ लेकिन एक शाम नहीं हुआ उसके साथ वो सूरज नहीं ढाला उसके साथ थम सी गयी मेरी जिन्दगी उसके साथ ही काट दिया था किसी ने उसे दूर कर दिया था मुझसे अब भी मेरी जिन्दगी में उसकी जगह कोई नहीं ले सकता ना कोई दोस्त ना कि कोई रिश्ता अब शायद हम अपनी जिंदगी में वो जगह किसी को ना दे पाए उसे पेड़ बोलू या सुकून एक ही बात है।