बचपन की मस्ती थी
दिल ये आवारा था,
खेलने की मस्ती थी
दिल वो आवारा था
ना खाने का गम था ।
ना कुछ पीने का गम था ।
वो दिन भी कितना न्यारा था
कागज की कश्ती थी..!
पानी का किनारा था...
बचपन की मस्ती थी,
दिन को कितना प्यारा था।
सो जाते थे,किसी की आंगन में
पर जागते थे,मां के अंचल में ही थे।
वो दिन भी कितना, प्यार था।
बचपन की मस्ती थी।
दिल वो आवारा था,.....
।
✍️✍️✍️.........मिथिलेश राम.....✍️✍️✍️