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के आस पास

30 दिसम्बर 2017

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  • अब नहीं है मेहबूब फिदाई के आस पास, इश्क आ पहुँचा जुदाई के आस-पास। कल तक गुरूर था न जाने किस बात का, बात जा पहुँची रुसवाई के आस-पास, कहकसाओं भरी रातों की मुलाकातें नहीं रहीं अच्छाई दफ्न हो गई बुराई के आस-पास। मोहब्बत जो कल तक दिलों में थी, बेवफा ने पहुँचाया शहनाई के आस-पास। इतनी शिद्दत से चाहा था उसको 'अयुज' दिल अब भी रहता है हरजाई के आस-पास।
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amareshgautam
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ये काव्य जहां से पनपाहै, ये दिलजिस पर मतवाला है, वो ही मेरी गीतांजलि है , वो ही मेरी मधुशाला है|

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