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प्रमोद रंजन कुकरेती के बारे में

बस यों ही शौक से लिख लेता हूं ।,बस यों ही शौक से लिख लेता हूं ।

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प्रमोद रंजन कुकरेती की पुस्तकें

Khud

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बस में में जो आया, जो अच्छा लगा , व्यक्त कर दिया ।

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प्रमोद रंजन कुकरेती के लेख

लो हो गयी भोर

7 अगस्त 2019
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सांझ ढलने को थी जब उसकी ऑख खुली थी । उसने अपनी नजर को कमरे के चारों ओर घुमाया, ये उसका कमरा नहीं था । सामने खिडकी खुली थी और सामने खूबसूरत पहाडियां नजर आ रही थी । आकाश में पंछियों के झॅुड अपने घरोंदो की ओर जा रहे थे । जिस बिस्‍तर पर वो लेटी थी वो शायद किसी अस्‍पताल का

पिता हूँ

4 अगस्त 2019
3
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बहुत चाहा कि मैं भी हो जाऊं ,नम्र, विनम्र बिलकुल तुम्हारी मां की तरह ।पर ना जाने कहां से आ जाती हैपिता जन्य कठोरता , मुझमें ,अपने आप से ।में अब भी चाहता हूं किअब भी तुम,सड़क पार करो मेरी उंगली पकड़कर ।मेरे कंधों पर चढोऔर दुनिया देखो।कितना अव्यवहारिक हो जाता हूँ मैं बिना स्वीकार किये कि दुनिया कितनी बद

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