पिता हूँ
बहुत चाहा कि मैं भी हो जाऊं ,नम्र, विनम्र बिलकुल तुम्हारी मां की तरह ।पर ना जाने कहां से आ जाती हैपिता जन्य कठोरता , मुझमें ,अपने आप से ।में अब भी चाहता हूं किअब भी तुम,सड़क पार करो मेरी उंगली पकड़कर ।मेरे कंधों पर चढोऔर दुनिया देखो।कितना अव्यवहारिक हो जाता हूँ मैं बिना स्वीकार किये कि दुनिया कितनी बद