की वो अंधेरो में जुगनुओं की तरह चमकती रही।
हम उजालो में खोते गए।
की ठंढ में वो ,आँग की तरह धधकती रही।
हम कम्बल लिए ठंढ में ठिठुरटे गए।
की वो चुप होकर भी बोलती रही।
और हम मरकर भी सुनते गए।
©_a_becoming_writer_
13 नवम्बर 2021
की वो अंधेरो में जुगनुओं की तरह चमकती रही।
हम उजालो में खोते गए।
की ठंढ में वो ,आँग की तरह धधकती रही।
हम कम्बल लिए ठंढ में ठिठुरटे गए।
की वो चुप होकर भी बोलती रही।
और हम मरकर भी सुनते गए।
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