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"विश्वास "

7 सितम्बर 2021

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दो अगर विश्वास साथी, 
साथ चल दूंँ मैं तुम्हारे!
 फिर रहूंँ मझधार में ,
या रहूंँ तट के किनारे !

एक तुम जो साथ हो ,
चाह किसको भीड़ की!
 प्रेम के वटवृक्ष नीचे ,
चाह बस एक नीड़ की!
 दो अगर आकाश साथी ,
साथ उड़  लूँ मैं तुम्हारे !
फिर रहूँ मझधार में ,
या रहूँ---------------- 


प्रेम की है वल्लरी ,
विश्वास की एक शाख पर!
 देखो कहीं, टूटे नहीं ,
मंद पवन की घात पर!
 दो यही अहसास साथी ,
हों हमारे भी सहारे!
 फिर रहूँ  मझधार में,
या रहूँ ---------------- 


जिंदगी की एक चुभन भी, 
गर चुभे जो  शूल सी!
 खारे जल की बूंँद से,
 गर खिले एक फूल भी!
 दो यही बस आस साथी,
 जिंदगी में हो बहारें !
फिर रहूंँ मझधार में ,
या रहूंँ---------------- 

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बहुत-बहुत धन्यवाद आपका

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