दो अगर विश्वास साथी,
साथ चल दूंँ मैं तुम्हारे!
फिर रहूंँ मझधार में ,
या रहूंँ तट के किनारे !
एक तुम जो साथ हो ,
चाह किसको भीड़ की!
प्रेम के वटवृक्ष नीचे ,
चाह बस एक नीड़ की!
दो अगर आकाश साथी ,
साथ उड़ लूँ मैं तुम्हारे !
फिर रहूँ मझधार में ,
या रहूँ----------------
प्रेम की है वल्लरी ,
विश्वास की एक शाख पर!
देखो कहीं, टूटे नहीं ,
मंद पवन की घात पर!
दो यही अहसास साथी ,
हों हमारे भी सहारे!
फिर रहूँ मझधार में,
या रहूँ ----------------
जिंदगी की एक चुभन भी,
गर चुभे जो शूल सी!
खारे जल की बूंँद से,
गर खिले एक फूल भी!
दो यही बस आस साथी,
जिंदगी में हो बहारें !
फिर रहूंँ मझधार में ,
या रहूंँ----------------