आज बहस के केंद्र में भ्रष्टाचार है। एक तरफ टीम अन्ना है तो दूसरी ओर सरकार। तीसरी तरफ हैं आप। बहुत कुछ देखा आपने। बहुत सोचा। अब आपकी बारी है। सब कुछ बोलिए। खुल कर बोलिए। यहाँ अन्ना और सरकार, दोनों सुन रहे हैं आपकी बात। अब एक ही मंच पर होंगे पक्ष-विपक्ष और आप। यानी 'इंडिया की सोच'।
भास्कर समूह की इस पहल में अब आपको हर बड़े मुद्दे पर विशेषज्ञ ही नहीं, मुद्दे से जुड़े लोग भी देंगे अपनी राय और जानेंगे आपके विचार। आपके कमेंट्स और वोट तय करेंगे इंडिया की सोच। तो सबसे पहले जानेंगे राजनीति में फैले भ्रष्टाचार पर 'इंडिया की सोच'। इस विषय पर पढ़िए भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगा रहे अन्ना हजारे के साथी अरविन्द केजरीवाल की राय। और , नेताओं का पक्ष रख रहे हैं कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी। यह बहस आपके विचारों से होगी पूरी।
आजादी की 64वीं सालगिरह पर यह एक शुरुआत है। यह शुरुआत आजादी की सालगिरह के मौके पर करने के पीछे भी एक खास मकसद है। मकसद यह कि भ्रष्टाचार की बात करते हुए भ्रष्टाचार से लड़ने और आजादी पाने की राह भी निकालने का संकल्प लिया जाए।
राजनीति के बाद ब्यूरोक्रेसी, न्यायपालिका, मीडिया, रक्षा, स्वास्थ्य व खेल के क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार की भी बात होगी। इनके अलावा जो विषय आप सुझायेंगे, उन पर भी भास्कर बतायेगा- क्या है 'इंडिया की सोच'। फिलहाल पढि़ए राजनीति में भ्रष्टाचार पर केजरीवाल और अल्वी की राय और दीजिए अपने विचार।
भ्रष्टाचारी के साथ है 'सरकारी लोकपाल'
अरविंद केजरीवाल
(लेखक अन्ना हजारे के सहयोगी हैं)
भ्रष्टाचार से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है। अफसोस की बात है कि सरकार इसे मिटाने के बजाय बढ़ावा दे रही है। सरकार ने लोकपाल बिल का जो मसौदा पेश किया है, वह भी भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने और आम जनता की आखों में धूल झोंकने वाला है। इसके मुताबिक यदि कोई नागरिक किसी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से करता है और उसके पास सबूतों की कमी है तो उसे कम से कम दो साल कारावास की सजा का प्रावधान है। सरकार उस नागरिक के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए भ्रष्ट अधिकारी को मुफ्त में वकील मुहैया कराएगी। लेकिन शिकायत के बाद अगर यह साबित हो जाता है कि उक्त अधिकारी वाकई भ्रष्ट है तो उसे महज छह महीने की सजा होगी। यानी यह बिल भ्रष्टाचार और भ्रष्टतंत्र के खिलाफ नहीं, बल्कि उन लोगों के खिलाफ है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उ�� ाने की हिम्मत करते हैं।
साल भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उ�� ाने की हिम्मत करने वाले 13 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया है। सरकारी लोकपाल बिल में ऐसे लोगों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। सरकारी बिल में भले ही केंद्र सरकार के कुछ सीनियर अधिकारियों को लोकपाल के दायरे में रखा गया है, लेकिन राज्य सरकार के सभी कर्मचारियों और राजनेताओं को बाहर रखा गया है। ऐसे में यह बिल लाने का भला क्या मतलब रह जाता है?
यदि सरकारी लोकपाल बिल लागू हुआ तो पंचायत के कार्यों में व्याप्त भ्रष्टाचार जारी रहेगा। सरकारी योजनाओं के काम के लिए फर्जी नामों पर भुगतान कर पैसे हड़पे जाते रहेंगे। सरकारी अस्पतालों से दवाओं की कालाबाजारी होती रहेगी। अफसर को पैसा देकर मास्टर साहेब स्कूलों से गैरहाजिर रहते रहेंगे। गरीबों के राशन पर दी जाने वाली 30 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी का 80 फीसदी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता रहेगा। क्योंकि मौजूदा लोकपाल बिल में इस तरह के भ्रष्टाचार को शामिल नहीं किया गया है।
आदर्श हाउसिंग सोसायटी जैसा घोटाला भी इस लोकपाल के दायरे में नहीं आएगा। रेड्डी बंधु हमारी खदानों और खनिज पदार्थों की लूट जारी रखेंगे। कॉमनवेल्थ गेम्स, चारा घोटाला, ताज कॉरिडोर घोटाला, यमुना एक्सप्रेसवे घोटाला, झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड, वोट के बदले नोट प्रकरण - इनमें से कोई भी सरकारी लोकपाल के दायरे में आने लायक भ्रष्टाचार नहीं है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों, सभासदों, सरपंचों, जजों, राज्य सरकार के सभी कर्मचारियों, केंद्र सरकार के ग्रुप बी, ग्रुप सी और ग्रुप डी के सभी अधिकारियों को सरकारी लोकपाल बिल के दायरे से बाहर रखा गया है।
यह बिल क़ानून में बदल जाने के बाद भी सीबीआई पर सरकार का नियंत्रण पहले की तरह बना रहेगा। सीबीआई राजा जैसे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकेगी, यदि सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों पर कार्रवाई के लिए नहीं कहे। क्वात्रोच्चि जैसे लोगों के बैंक खातों को गोपनीयता के नाम पर आगे भी बंद रखा जाता रहेगा। मायावती, मुलायम सिंह, लालू यादव, जयललिता जैसों के खिलाफ सीबीआई को बतौर हथियार इस्तेमाल किया जाता रहेगा।
सरकार का लोकपाल बिल कमजोर ही नहीं, असंवैधानिक भी है। संविधान के तहत प्रधानमंत्री को जांच से किसी तरह की छूट नहीं मिली है, लेकिन इस बिल के दायरे से पीएम को बाहर रखा गया है, जो संविधान के खिलाफ है। लोकपाल के सदस्यों के चयन और उन्हें हटाने का पूरा अधिकार भी सरकार के हाथ में ही होगा। चयन समिति के नौ में से पांच सदस्य सरकार के प्रतिनिधि होंगे। इस तरह सर्वाधिक भ्रष्ट, दोषी और राजनीतिक वफादार लोगों को लोकपाल का सदस्य चुनने की शक्ति होगी।
हम जो लोकपाल बिल चाहते हैं, उसके तहत केंद्र सरकार के लिए लोकपाल और राज्य सरकारों के लिए लोकायुक्त का ग�� न होगा। लोकपाल केंद्र सरकार के कर्मचारियों और राजनेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की शिकायतों की जांच करेगा। यही काम राज्यों में लोकायुक्त का होगा। लेकिन सरकार ने हमारी मांगें मानने से इनकार कर दिया है। यदि सरकारी बिल कानून बन जाता है तो हम अपने देश को भ्रष्टाचारियों को सौंप देंगे जो हमारे संसाधनों की लूट-खसोट करते रहेंगे।
राजनीति में ज्यादातर ईमानदार
राशिद अल्वी
(लेखक कांग्रेस के प्रवक्ता हैं)
भ्रष्टाचार सिर्फ राजनीति में नहीं, हर तबके, पूरे समाज में है। राजनीति से जुड़े लोग मुखर होते हैं, सबकी नजरों में रहते हैं, इसलिए उनका भ्रष्टाचार भी सबसे पहले नजर आ जाता है। लेकिन सवाल है, राजनीति में भ्रष्टाचार आता कहां से है? अन्ना हजारे ने कहा है कि वह चुनाव नहीं जीत सकते, क्योंकि उनके पास काला धन नहीं है और न ही पिलाने के लिए शराब है। तो अन्ना को यह भी बताना चाहिए कि उन्हें किसके लिए शराब या पैसा चाहिए? चुनाव जिताने के लिए कौन लेता है शराब या पैसा?
राजनीति में आए लोग जनता के ही चुने होते हैं। किसी शख्स का चरित्र चुने जाने से पहले जो होता है, बाद में भी वह बदल नहीं सकता। अगर बेईमान लोग चुने जाएंगे तो वे चुने जाने के बाद बेईमानी करेंगे ही। जनता अपना जन प्रतिनिधि चुनते समय बिरादरी, मजहब, इलाका जैसी चीजों का खयाल रखती है। उम्मीदवार के चरित्र का नहीं। वोट देने के लिए भी पैसे दिए-लिए जाते हैं। इस तरह, राजनीति में भ्रष्टाचार की बुनियाद जन प्रतिनिधियों के निर्वाचन में ही है।
फिर भी राजनीति में ज्यादातर लोग ईमानदारी से अपना काम करते हैं। जो बेईमानी करते हैं, उन्हें सबक सिखाने के लिए कानून है। कानून भी अपना काम करता है। अगर ऐसा नहीं होता तो राजा, कलमाड़ी जेल में नहीं होते। पर भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कानून ही काफी नहीं है। समाज को �� ीक करना होगा। और, इसके लिए समाज के हर तबके को साथ आना होगा। सभी को मिल कर तय करना होगा कि न रिश्वत देनी है, न लेनी है। पंचायत से लेकर संसद तक, कहीं भी भ्रष्टाचारी को चुन कर नहीं भेजने का संकल्प लेना होगा।
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोकपाल कानून बनाए जाने की मांग हो रही है। इसके लिए बिल संसद में लाया जा चुका है। लेकिन संसद के बाहर का एक पक्ष सरकार की ओर से पेश बिल का विरोध कर रहा है। लोकपाल का मकसद है भ्रष्टाचार कम करना। हालांकि �� ोस रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि इसके आने से भ्रष्टाचार में कितनी कमी आ जाएगी। सबके साथ मिल कर काम करने से ही भ्रष्टाचार मिटेगा। फिर भी, लोकपाल बनना चाहिए। लेकिन अन्ना जी जिद कर रहे हैं कि इसके दायरे में प्रधानमंत्री को भी लाएं। उनका मकसद क्या है? यही ना कि प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की निगरानी और इस पर कार्रवाई हो?
सरकारी बिल में प्रावधान है कि प्रधानमंत्री के पद से हटने के सात साल बाद तक उनके कार्यकाल के कार्यकलापों की जांच हो सकती है और दोषी पाए जाने पर सजा दी जा सकती है। तो क्या इस प्रावधान से अन्ना जी का यह मकसद पूरा नहीं हो रहा है? फिर अन्ना की जिद क्यों? उन्हें उनके साथी बरगला रहे हैं। क्या यह जरूरी नहीं है कि प्रधानमंत्री पद की गरिमा बनाई रखी जाए? भ्रष्टाचार सड़कों पर उतर कर कानून हाथ में लेने से खत्म नहीं होने वाला। इसके लिए सबको एक होना होगा। यह बात अन्ना जी को भी समझ लेनी चाहिए।
फैक्टफाइल
1. नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म नाम के दो गैरसरकारी संग�� नों के मुताबिक 2009 में चुने गए 543 सांसदों में 153 के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे थे।
2. 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत कर आए पश्चिम बंगाल के 35 फीसदी, तमिलनाडु के 29 फीसदी, असम के 10फीसदी और पुड्डुचेरी के 30 फीसदी विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं।
3. राज्यसभा की 49 सीटों के लिए हाल ही में हुए चुनाव में 54 उम्मीदवारों में से 15 (28%) ऐसे थे, जिन्होंने हलफनामे में स्वीकार किया है कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें हत्या की कोशिश, धोखेबाजी और जालसाजी जैसे मामले शामिल हैं।
4. तमिलनाडु में पिछले चुनावों में करीब 60 करोड़ रुपये नकद बरामद हुए, जो अपने आप में रिकॉर्ड है। ज़्यादातर विधायकों ने यह दिखाया कि उन्होंने सिर्फ 3.12 लाख और 9.39 लाख (तय सीमा का 39 से 59 फीसदी) के बीच चुनावी खर्च किया।
5. असम के 37 फीसदी विधायक, तमिलनाडु के 52 फीसदी, पश्चिम बंगाल के 16 फीसदी और पुड्डुचेरी के 63 फीसदी विधायक करोड़पति हैं। राज्यसभा के लिए ज़्यादातर पार्टियों ने ऐेसे उम्मीदवारों को चुना जिनके पास बहुत संपत्ति थी। 12 राज्यों के 54 उम्मीदवारों में 43 करोड़पति थे। इनमें से 38 (78फीसदी) ने जीत दर्ज की।
6. नेशनल इलेक्शन वॉच के मुताबिक राज्यसभा के इस चुनाव में दस लाख से कम संपत्ति वाले एक फीसदी से भी कम उम्मीदवार चुनाव जीत पाए। 10 करोड़ से ऊपर की संपत्ति घोषित करने वाले 48 फीसदी उम्मीदवारों ने महाराष्ट्र से जीत दर्ज की। हरियाणा से ऐसी जीत दर्ज करने वालेउम्मीदवारों की तादाद 44 फीसदी थी।