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रामचंद्र गुहा अनुवाद/ गांधी के बाद

13 सितम्बर 2022

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रामचंद्र गुहा का जन्म सन् 1958 में देहरादून में हुआ, आपने दिल्ल कलकत्ता में अपनी पढ़ाई पूरी की। साथ ही आपने ओस्लो, स्टैंडफोर्ड, येल विश्वविद्यालयों और भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस) में अध्यापन किया। आप विसेनचेफकोलेज जु बर्लिन में फेल रहे हैं और कैलीफोर्निया यूनीवर्सिटी, बर्कले में इंडो अमेरिकन कम्युनिटी चेयर विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे हैं। दस साल के दरम्यान तीन महाद्वीपों में पांच अकादमिक पदों पर रहने और इस तरह कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के बाद आप एक पूर्णकालिक लेखक बन गए और बंगलौर को अपना स्थायी ठिकाना बना लिया। आपने विविध विषयों पर अपनी कलम चलाई है जिसमें पर्यावरणवाद का वैश्विक इतिहास, एक मानवशास्त्री - आंदोलनकारी की जीवनी, भारतीय क्रिकेट का सामाजिक इतिहास और हिमालयी किसानों का सामाजिक इतिहास आदि शामिल है। आप कहते हैं कि ऐसा लगता हैआपके द्वारा लिखी गई किताबों और लेखों का अनुवाद बीसी ज्यादा भाषाओं में हो चुका है।मैं एक रात एक पहुंचे हुए संत से पूछा (जो इस कालचक्र का रहस्य जानता था) बाबा, तुम जानते हो कि अच्छाई और विश्वास, नैतिकता और प्रेम इस अभागे देश से पलायन कर चुका है, बाप और बेटे एक दूसरे का गला काटने पर उतारू हैं, भाई और भाई लड़ रहे हैं, एकता और संघ की भावना खत्म गई है, इन अशुभ संकेतों के बावजूद अभी तक कयामत का दिन क्यों नहीं आया? अंतिम घड़ी की विजय ध्वनि क्यों नहीं सुनाई देती? अंतिम विनाश का सूत्र किसके हाथों में है.... ? गालिब का शेर मुगल साम्राज्य के पतन की पृष्ठभूमि में था। गंगा-सिंधु की घाटी का उनका अपना इलाका जो कभी एक बादशाह के अधीन था, अब आपस में लड़ते कटते कई सरदारों और सेनाओं में बंट चुका था। भाई से भाई लड़ रहे थे, एकता और संघ की भावना कहीं नहीं थी। लेकिन जब वह इन पंक्तियों को लिख रहे थे उसी वक्त अंग्रेजों शक्ल में एक नई (और विदेशी) ताकत हिंदुस्तान की सरजमीन परअपना पंजा फैला रही थी। वे धीरे-धीरे उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित करते जा रहे थे। उसके बाद सन् 1857 में देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़ा हुआ जिसे साम्राज्यवादियों ने सिपाही विद्रोह कहा तो राष्ट्रवादियों ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया।

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रामचंद्र गुहा अनुवाद
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रामचंद्र गुहा का जन्म सन् 1958 में देहरादून में हुआ, आपने दिल्ल कलकत्ता में अपनी पढ़ाई पूरी की। साथ ही आपने ओस्लो, स्टैंडफोर्ड, येल विश्वविद्यालयों और भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस) में अध्यापन किया। आप विसेनचेफकोलेज जु बर्लिन में फेल रहे हैं और कैलीफोर्निया यूनीवर्सिटी, बर्कले में इंडो अमेरिकन कम्युनिटी चेयर विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे हैं। दस साल के दरम्यान तीन महाद्वीपों में पांच अकादमिक पदों पर रहने और इस तरह कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के बाद आप एक पूर्णकालिक लेखक बन गए और बंगलौर को अपना स्थायी ठिकाना बना लिया। आपने विविध विषयों पर अपनी कलम चलाई है जिसमें पर्यावरणवाद का वैश्विक इतिहास, एक मानवशास्त्री - आंदोलनकारी की जीवनी, भारतीय क्रिकेट का सामाजिक इतिहास और हिमालयी किसानों का सामाजिक इतिहास आदि शामिल है। आप कहते हैं कि ऐसा लगता हैआपके द्वारा लिखी गई किताबों और लेखों का अनुवाद बीसी ज्यादा भाषाओं में हो चुका है।मैं एक रात एक पहुंचे हुए संत से पूछा (जो इस कालचक्र का रहस्य जानता था) बाबा, तुम जानते हो कि अच्छाई और विश्वास, नैतिकता और प्रेम इस अभागे देश से पलायन कर चुका है, बाप और बेटे एक दूसरे का गला काटने पर उतारू हैं, भाई और भाई लड़ रहे हैं, एकता और संघ की भावना खत्म गई है, इन अशुभ संकेतों के बावजूद अभी तक कयामत का दिन क्यों नहीं आया? अंतिम घड़ी की विजय ध्वनि क्यों नहीं सुनाई देती? अंतिम विनाश का सूत्र किसके हाथों में है.... ? गालिब का शेर मुगल साम्राज्य के पतन की पृष्ठभूमि में था। गंगा-सिंधु की घाटी का उनका अपना इलाका जो कभी एक बादशाह के अधीन था, अब आपस में लड़ते कटते कई सरदारों और सेनाओं में बंट चुका था। भाई से भाई लड़ रहे थे, एकता और संघ की भावना कहीं नहीं थी। लेकिन जब वह इन पंक्तियों को लिख रहे थे उसी वक्त अंग्रेजों शक्ल में एक नई (और विदेशी) ताकत हिंदुस्तान की सरजमीन परअपना पंजा फैला रही थी। वे धीरे-धीरे उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित करते जा रहे थे। उसके बाद सन् 1857 में देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़ा हुआ जिसे साम्राज्यवादियों ने सिपाही विद्रोह कहा तो राष्ट्रवादियों ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया।

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