रंजीत भट्टाचार्य
वरिष्ठ कवि, लेखक, पत्रकार। 40+वर्षों से देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन। 3 पुस्तकें प्रकाशित। कविता संग्रह *पांव बने हाथ* वर्ष 1987 । विज्ञान उपन्यास *अबूझमाड़ का अतिथि* वर्ष 1997 । ग़ज़ल संग्रह *दुबला पतला चांद* वर्ष 2009। मोबाइल 75 873 47 882
समुंदर कहीं उलट न जाए आसमान में
समुंदर कहीं उलट न जाए आसमान में यह एक मिसरा (लाइन ) है जो मेरे एक शे'र का भाग है, शे'र जो मेरी एक ग़ज़ल का अंश है, ग़ज़ल जो मेरी इसी किताब का एक हिस्सा है....ऐसी कई परिकल्पनाएं होंगी इस किताब में। 42 साल के साहित्य सृजन में कोई 10 साल की है मेरे ग़
समुंदर कहीं उलट न जाए आसमान में
समुंदर कहीं उलट न जाए आसमान में यह एक मिसरा (लाइन ) है जो मेरे एक शे'र का भाग है, शे'र जो मेरी एक ग़ज़ल का अंश है, ग़ज़ल जो मेरी इसी किताब का एक हिस्सा है....ऐसी कई परिकल्पनाएं होंगी इस किताब में। 42 साल के साहित्य सृजन में कोई 10 साल की है मेरे ग़