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राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी तथा लाल बहादुर शास्त्री के विचारों की प्रासंगिकता और आज का दौर

3 अक्टूबर 2022

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आज अक्टूबर का तीसरा दिन. सुबह सुबह नवरात्रि के आठवें दिन ठंडक की दस्तक का एहसास होना शरू हो  गया है.   एक दिन पहले ही हमने रष्ट्र पिता महात्मा गाँधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन उनके विचारों  तथा उनके व्यक्तित्व के दर्शन से अविभूत हुए. दोनों का व्यक्तित्व  सादगीपूर्ण तथा सहासिक था.  वर्ष 1930 में गाँधी जी के सविनय अवज्ञा  आंदोलन जुड़े. इसके बाद दांडी यात्रा , असहयोग आंदोलन, अंग्रेजो भारतछोड़ो आंदोलन में गाँधी जी के  साथ सक्रिय भूमिका निभाई.  इन दोनों के विचार आज के दूषित समाज के लिए एक वरदान है तथा हमें इसे जल्द से  जल्द इनके मार्दर्शन को अपनाना होगा.  देश की तरक्की के लिए आये दिन  हम लगातार लड़ते रहेंगे  तो देश की को ही परेशानियों का   सामना करना पड़ेगा . हमें आपस में लड़ने के बजाये    गरीबी,  बीमारी,  और दकियानूसी विचारों से लड़ना  होगा.  जो देश  का  नेतृत्व  करते  हैं  उन्हें  यह  देखना  चाइये  कि  जनता  प्रशासन  पर   किस तरह  से  प्रक्रिया  करते  है,  उनकी शिकायतों  का निवारण कैसे  किया  जाता  है.  अंतत:  जनता  ही  मुखिया  होती  है. हमें सिर्फ अपने क्षेत्र, राज्य , के लिए नहींबल्कि समस्त देश व् विश्व के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास के लिए कार्य करना होगा. जब वर्तमान में देश में चारो असंतोष, बैचेनी का माहौल फैला जा रहा है,  देश की अखंडता खतरे में हो तो पूरी शक्ति से  चुनौती का मुकाबला करनामिलकर किसी प्रकार के  आपेक्षित  बलिदान  के  लिए संकल्प  के  साथ रहने के लिए तैयार होना होगा. देश का नेतृत्च करने वाले लोगों का मूल विचार यह होना चाइये कि समाज को कैसे एकजुट रखा जाए ताकि देश के विकास में योगदान दे सकें और  अपने  लक्ष्यों  की  तरफ बढ़  सकें.  उपरोक्त विचार देश के ये दोनों कोहिनूर के थे जो आज कही खो गया सा लगता है.  देश  में हाथरस, कानपुर, लखीमपुर, ऋषिकेश, उदयपुर, दलित के नाम पर बच्चो को पानी न पीने देना ,          जैसे कांड लोगों को मानवीय मूल्यों पर चिंतन हेतु विवश करते हैं तो कभी लड़कियों पर  केमिकल-तेज़ाब डालना , स्कूल  न  जाने देना, ड्रग्स, जैसे मामले समाज को झकझोरते हैं। आज संपूर्ण देश बाज़ारवाद के दौड़ में शामिल हो चुका है। विकास  के  नाम पर बटवारा ही हो रहा है      ऐसे में गांधीवाद और  शास्त्री  के  विचारों  की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक हो जाती है। आज के दौर में जब समाज में कल्याणकारी आदर्शों का स्थान असत्य, झूठ अश्लीलता, अवसरवाद, धोखा, चालाकी, लालच व स्वार्थपरता जैसे  गंदे व्  संकीर्ण विचारों द्वारा लिया जा रहा है तो समाज में सहिष्णुता, प्रेम, मानवता, भाईचारे जैसे उच्च आदर्शों को विस्तृत की  आवश्यकता  है । विश्व शक्तियाँ  सनकी  व्  घमंडी  हो  चुकी  हैं,  शस्त्र एकत्र करने की स्पर्धा में लगी हुई है  तथा समाज व् विश्व के बुद्धिजीवियों के पास कोई प्लेटफार्म नहीं रह गया है अपने बात रखने का.  ऐसे में शांति की स्थापना की  पहल  के लिये, मानवीय मूलों को पुन: प्रतिष्ठित करने के लिये आज गांधीवाद व्  शास्त्री  के  नए स्वरूप में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो उठा है।

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