फज़र
शबनम की बूंदे बरसने लगे,फूलो की खुश्बू महकने लगे,रात गुजरी ये कैसे पता ही नहीं,भोर में पक्षिया चहचाने लगे।नींद आती नहीं सोचकर बस यही,भूख के मारे बच्चे अब सोने लगे।भोर की कुछ मंज़र ऐसी रही,दिए बुझने लगे हम टहलने लगे।सहर* में अंधेरा रहा ही नहीं,जो अफताब* घर से निकलने लग