मित्रो..... हर वर्ष की भांति अब फिर ग्रीष्म ऋतु आ गयी है, विधालय से बच्चों की छुट्टियाँ हो गयी हैं, कुछ बच्चों को नवीन कक्षा में दाखिला मिल गया है कुछ को मिलना बाकी है ! कुछ माता पिता अपने बच्चों को खुद से दूर घर से दूर बोर्डिंग में डलवा रहे हैं ! ध्यान दें……. यही बच्चे बड़े हो कर अपने बूढ़े माँ बाप को बोर्डिंग (वृद्ध आश्रम) में भेज देते हैं, कुछ लोग फैशन में आकर कुछ पाश्चात्य सभ्यता में रंग कर, कुछ पड़ोसियों या रिस्तेदारों की होड़ में आकर अपने बच्चों को खुद से दूर कर देते हैं, और बहाना होता है की अपने बच्चों को ऊँची शिक्षा दिलवाना, जो कि सिरे से झूठ है........
वास्तव में ऐसे माता पिता अपने बच्चों को किसी कारण वश समय नहीं दे पाते..... या फिर देना ही नहीं चाहते, कैसा वक़्त है कि जिन बच्चों को माता की गोद में खेलना चाहिए उन बच्चों को आया पाल रही है, जिन बच्चों को माता को स्तन पान (अमृत पान) करना चाहिए वो बच्चे बोतल का दूध पी कर बड़े हो रहे हैं, जो माँ शक्ति स्वरूपा है, जो माँ ममतामई है, वही माँ अपना फिगर के लिए ऐसा कर रही है, जिन बच्चों को सुबह उठ कर राम राम बोलना चाहिए, बड़ों के पावों को छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए उन बच्चों को गुड मोर्निंग सिखाया जा रहा है ।
सुबह सुबह उठकर रघुनाथा....
मात पिता गुरु नावहिं माथा....
रामायण का कितना सुन्दर दोहा है । परन्तु ये संस्कार बहुत कम देखने को मिलता है । लोगों को ध्यान होगा कि पहले बच्चे बिस्तर पर उठते ही सबसे पहले गणेश जी, माँ सरस्वती का ध्यान करते थे..... आज कल सभी सुबह उठते ही फेसबुक और व्हाटसअप का ध्यान करते हैं । सुबह शाम घर में गूंजने वाले भजनों के आवाज प्रायः लुप्त होते जा रहे हैं ।
मुझे याद आ रहा है मैं पांचवी या छठी कक्षा में पढता था, हर शाम को मेरे दादाजी मुझे बुलाते और कहते कि दिनेश बेटा मेरा ऐनक कहीं गुम हो गया है, नहीं मिल रहा तुम मुझे रामायण की कुछ चौपाईयां सुना दो ! और घर के प्राणागन में एक किनारे तुलसी का पौधा लगा था, उसके सामने धूप दीप जलाकर और प्रकाश की उचित व्यवस्था कर के आसन बिछा कर मुझे साथ बिठा कर मुझसे रामायण सुना करते थे ! दादा जी का चश्मा रोज शाम को खो जाता और मै रोज उनको रामायण सुनाया करता था । अब मुझे भी रामायण पढने में आनंद आने लगा, अगर मै खेलने के लिए कहीं बाहर गया होता तो शाम ठीक समय पर घर आ जाता था ! एक दिन मैंने पूछा दादाजी दिन में आप चश्मा लगा कर रखते हो पर शाम होते ही रोज आप का चश्मा कहाँ गुम हो जाता है ? तो दादाजी ने बताया - बेटा मेरा चश्मा कहीं गुम नहीं होता वो मेरे पास ही होता है । तुम रामायण पढने के लिए मना न करो इस लिए मैंने ऐसा कहा । फिर मैंने पूछा जब आप स्वयं रामायण पढ़ सकते हैं फिर मुझसे क्यों पढवाते हैं ?
दादाजी फिर बोले बेटा इससे तुम्हारे अन्दर संस्कार पैदा होगा । तुम्हे ईश्वर की कृपा प्राप्त होगी, तुम्हारे से कोई भी गलत कार्य नहीं होगा, ईश्वर सदैव तुम्हारी रक्षा करेगा, तुम्हे भौतिक संसधानो की कोई भी कमी नहीं रहेगी !
और आज जो मुझे जानता है वो यह भी जानता है कि ईश्वर ने मुझे ऐसे गुरु की शरण में भेज दिया है जिनका नाम अध्यात्म की दुनिया में सूर्य की भांति चमक रहा है, गुरुदेव सर्व श्री श्री आचार्य बहल जी का शिष्य हूँ मैं, और ये मेरे संस्कार और ईश्वर की कृपा का फल है !
ऐसा नहीं है कि हर घर से संस्कार ख़त्म हो गया है, लेकिन फिर भी माता पिता को अपने सुन्दर कल के लिए अपने बच्चों के सुन्दर भविष्य के लिए कुछ बदलाव अपने भीतर कुछ बदलाव घर के अन्दर, कुछ अपने बच्चों के अन्दर, तो लाना ही पड़ेगा ! हरी ॐ......
-: दिनेश कुमार :-