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सनसनाते सपने

28 मई 2016

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तेरे सपने सच होते होंगे मैं तो यूंही मचलता हूं अपने भीतर की लपटों में मैं बर्फों सा पिघलता हूं तेरी गीतों में राग होंगे मेरे शब्दों में कुंठा है जब घुटन ,सहन से ज्यादा होती तब मैं इनको कहता हूँ जिसके आने की खबर नहीं उसे टकटकी बांध कर देखता हूं जब गुजर जाते हैं दिन तो कल्पनाओं में प्रतीक्षा करता हूं जो लम्हें अब बहस बन गए उन लम्हों के सहारे चलता हूं कुछ चौखट हैं जो खुलते ही नहीं उन्हें तोड़ने का जतन करता हूं जिस तिमिरपाश में कैद हूं मैं उस तिमिर में रंग ढूंढ़ता हूं रंगों को आसुओं में घोल जिंदगी का नया चित्र गढ़ता हूं । 


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