आइए जाने सत्यवादी वीर तेजाजी महाराज के बारे में----
तेजाजी महाराज का जन्म खरनाल नागौर के नागवंशीय धोल्या जाट परिवार में 29 जनवरी 1074 को हुआ था। इनके माता पिता का नाम राजकुंवरी व तहाड जी धोलिया थे। इनकी शादी बचपन में ही अजमेर जिले के पनेर गांव के रामचंद्र जाट की बेटी पेमल से कर दी गई थी।
जब तेजाजी जवान हुवे तब उनकी माता इनको खेत में बाजरा बोने को कहती है तेजाजी भोर होने से पहले ही बैल व हल लेकर के खेत बोने चले जाते हैं। इधर जेठ के महीने की भयंकर गर्मी और सुबह जल्दी आ जाने से तेजाजी को भूख लग जाती हे। इधर इनकी भाभी भाता (खाना) लेकर देर से आती है तब तेजाजी महाराज भाभी से खाना देरी से लाने का कारण पूछते है तब भाभी उनको खाना देर से लाने का कारण बताती है और अपने देवर को कह देती है की यदि गर्म जल्दी खाना चाहिए तो अपनी पत्नी पेमल को पीहर से गोना करके ले आए।
तभी उसी समय उनको ये भाभी की बात मन में लग जाती हे और वे अपनी प्रिय घोड़ी जिसका नाम लीलण था उसको लेकर रवाना होते है तभी उनके परिवार वाले पंडित से मुहूर्त निकलवाने को कहते हैं । पंडित इस समय को खराब बताते हे। तभी तेजाजी महाराज कहते है की
सूर न पूछे टीपणौ, सुकन न देखै सूर।
मरणां नू मंगळ गिणे, समर चढे मुख नूर॥
तेजाजी उसी वक्त पनेर को रवाना हो जाते है और २ दिन के बाद सासरे पहुंचते हे ज्यों ही व रामचंद्र जी मुथा के घर के दरवाजे के सामने पहुंचते हैं तभी गाय का दूध निकाल रही होती है उनकी सासू तभी उनकी घोड़ी से गाय बिदक जाती हे और दूध बिखर जाता है सासू अनजाने में उनको शराप दे देती की उनको काला सर्प डस लेगा। ये बात सुनकर तेजाजी को गुस्सा आता है और वाहा से रवाना होने ही लगते ही है तभी उनको वापिस मनुहार करके मना लिया जाता है।रात के वक्त जब तेजाजी सो रहे होते हैं तभी उसी गांव में लाच्छा गुजरी नामक महिला की गाये मेर के मीने ले जाते है तो वो लाच्छा गुजरी भागी भागी चिलाती हुई तेजाजी के पास आती हैं और अपनी गाये वापिस छुड़ा कर लाने की विनती करती हैं तभी तेजाजी महाराज गायों की रक्षा करने हेतु अपना धर्म समझते हैं और गायों को छुड़ाने हेतु रवाना हो जाते है।
(शेष अगले ब्लॉग में)..….