२६ जनवरी २०१५ को केंद्र सरकार द्वारा एक विघ्यापन प्रकाशित किया जिसमे हमारे सविधान को प्रदर्शित किये जाने का प्रयास था जिसमे से भूल वश या जानबूझ कर धर्मनिरपेक्ष व् समाजवाद इन विषयों को नदारद पाया गया जिस पर एक विचित्र चर्चा शुरू हो गयी की सविधान से धर्मनिरपेक्ष व् समाजवाद इन्हे हटा ही देना चाहिए .
हमारे सविधान निर्माताओं ने जिस धर्मनिरपेक्षता को आधार बनाकर सविधान का निर्माण किया था और यही हमारे सविधान की आत्मा है जिस पर जिस ढंग से चर्चा शुरू हुई है वह कितनी जायज है