- शब्द की शक्ति पर विचार करते हुए हमारा ध्यान भारतीय-मंत्रशास्त्र की तरफ जाता है। हमारे प्राचीन धर्म-ग्रन्थ मंत्रों की महिमा से भरे पड़े हैं और आज भी करोड़ों व्यक्ति मंत्रों के जप और प्रयोग द्वारा अपनी तरह-तरह की कामनाओं को पूरा करने का उद्योग करते रहते हैं। यहाँ की साधारण जनता का तो मंत्रों में अटल विश्वास है, पर आधुनिक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति मंत्र-शक्ति का कोई तर्क और बुद्धि-युक्त प्रमाण न मिलने से, उनको मानने से इनकार करते हैं। वे कहते हैं कि यह कैसे हो सकता है कि एक व्यक्ति द्वारा कुछ शब्दों के उच्चारण करने से दूसरे व्यक्ति का शिर का दर्द मिट जाय या बिच्छू आदि का विष उतर जाय? मंत्र द्वारा सन्तान होना, शत्रु पर विजय प्राप्त करना या लक्ष्मी की प्राप्ति आदि अनेक ऐसी बातें हैं, जिनके संबंध में लोगों में मतभेद दृष्टिगोचर होता है और प्रायः वाद-विवाद भी होने लगता है। एक मंत्र-शक्ति का पूर्णतः समर्थन करता है और दूसरा उसे कोरा बहम या कल्पना बतलाता है।
मन्त्र-शास्त्र का समर्थन करने से हमारा आशय यह नहीं कि आजकल जो ओझा, स्याने-भोपा आदि ‘मन्त्र’ का व्यवसाय करते हैं, वे सब वास्तव में उसके जानकार हैं और जो कुछ क्रिया वे करते हैं, वह पूर्णतया सच्ची होती है। जिस प्रकार आजकल सभी प्राचीन विद्याओं का लोप हो गया है और उनमें वास्तविकता के बजाय ढोंग और छल का प्रवेश अधिक हो गया है, वही दशा मन्त्र-शास्त्र की भी समझनी चाहिये। लोग न तो उसके तत्त्व को समझते हैं और न परिश्रमपूर्वक पूरा विधि-विधान करते हैं, उन्होंने तो इस केवल पेट भरने का धन्धा बना लिया है। अन्यथा जिस प्रकार विदेशों के विद्वान् पुरुष विज्ञान की विभिन्न शाखाओं की खोज कर रहे हैं और वास्तविकता का पता लगाने के लिये तन, मन, धन सब कुछ अर्पण कर देते हैं, उसी प्रकार यदि हमारे यहाँ भी शब्द-विज्ञान और उसके अंतर्गत मन्त्र-विज्ञान की खोज की जाती तो सैकड़ों ऐसे आश्चर्यजनक तथ्यों का पता लगता, जिससे हमारा व्यक्तिगत कल्याण होने के साथ ही भारतीय-संस्कृति का भी मुख उज्ज्वल होता।
भारतीय-दर्शन के मत से शब्द की शक्ति सबसे अधिक है, क्योंकि वह आकाश-तत्त्व से संबंधित है, जो सर्वाधिक सूक्ष्म होता है और सूक्ष्म-तत्त्व की शक्ति, स्थूल-तत्त्व की शक्ति की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। बारूद या किसी अन्य स्फोटक पदार्थ को जब विशाल शक्ति के रूप में परिणित करना होता है, तो उसमें चिनगारी लगाकर उसे स्थूल से सूक्ष्म गैस के रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है। आज हम आश्चर्य करते हैं कि प्राचीन ऋषि-मुनि किस प्रकार किसी मन्त्र या कुछ गूढ़ शब्दों का उच्चारण करके विनाश और निर्माण के बड़े-बड़े काम क्षणमात्र में कर दिखाते थे? इसका रहस्य यही था कि आज जिस प्रकार वैज्ञानिकों ने पिछले सौ वर्षों में स्फोट करने वाले स्थूल पदार्थों की खोज करते-करते भयंकर बम और घण्टे में आठ हजार मील दौड़ने वाले राकेट बना डाले, उसी प्रकार भारतीय ऋषि-मुनियों ने स्थूल पदार्थों के बजाय सबसे सूक्ष्म तत्त्व आकाश से उत्पन्न शब्द-शक्ति का अनुसंधान किया था और उसके प्रयोग की ऐसी-ऐसी विधियाँ मालूम की थीं कि जिसके प्रभाव से विश्व-ब्रह्माण्ड में भी हलचल उत्पन्न की जा सकती थी। आज भी जो लोग इस विद्या की एकाध छोटी-मोटी विधि को भली प्रकार सीख लेते हैं, वे आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाते हैं।
मन्त्र की क्रिया में केवल उसकी ध्वनि का ही (चाहे वह सुनने में आवे और चाहे भीतर ही उच्चारण किया जाय) प्रभाव नहीं पड़ता वरन् उसकी भावना तथा संकल्प शक्तियाँ भी काम करती रहती हैं। इन दोनों के मिल जाने से मन्त्र की शक्ति बहुत बढ़ जाती है। एक विद्वान् के कथनानुसार “भारतीय लिपि और अक्षर पूर्णतः वैज्ञानिक हैं और उसकी ध्वनियों में एक विशेष रहस्य छिपा है। मन्त्र में ‘आस्था’ भी एक प्रबल तत्त्व होता है, जिसे मानने में कितने ही लोग आना-कानी करते हैं। वैसे बिना ‘आस्था’ या भावना के भी मन्त्र-शक्ति का अनुभव किया जा सकता है, पर उसमें विलम्ब अधिक लगता है। इसीलिये किसी मन्त्र को सिद्ध करने के लिये दस हजार बार या लाख बार जपने का विधान बनाया गया है। इससे उसकी ‘आस्था’ हृदय में बद्धमूल हो जाती है।”
इस सबका निष्कर्ष यही है कि शब्द की शक्ति से अनेक बड़े महत्वपूर्ण कार्य संपन्न किये जा सकते हैं। हमारे पूर्वजों ने तो इस तथ्य को पूर्ण रूप से हृदयंगम करके उसे ‘शब्द-ब्रह्म’ की संज्ञा दी थी और ‘ॐ’ के रूप में उसको सृष्टि का उत्पादक माना था। ऐसी महान् शक्ति से अपरिचित रहना या उसकी उपेक्षा करना अपने हित पर स्वयं कुठाराघात करना है। हमको इस घातक प्रवृत्ति से बच कर शब्द ब्रह्म की उपासना करके उससे अधिकाधिक लाभ उठाना चाहिये।