शक्ति और उपासना
ब्रह्म और ब्रह्मांड की सक्रिय अवस्था ही शक्ति है, जैसे उष्णता आग से अभिन्न है ,ठीक वैसे ही शक्ति ब्रह्म से अभिन्न है।माया ,महामाया, मूल प्रकृति, विद्या अविद्या, परमेश्वरी , सभी शक्ति के ही रूप है।
दुर्गा , नवदुर्गा,काली , अष्ट शक्ति,नव शक्ति ये सब परा शक्ति का स्वरूप । महालक्ष्मी , महाकाली और मां सरस्वती ये शक्ति के प्रधान रूप।
शक्ति बिन प्रकृति अकल्पनीय है, शक्ति बिन जीवन की कल्पना भी भी की जा सकती। हमारा सजीव होना गतिविधियां करना शक्ति का प्रमाण है। हमारे जीवन के लिए हर जरूरत उपलब्ध होना भी शक्ति से ही संभव है।
इंद्रिय और प्राण शक्ति का ही परिणाम है,शक्ति जीवन का आयाम है।
उपासना = उप + आसन, यह अर्थ होता है। उप अर्थात उपर की ओर या फिर उपर की ओर प्रयास। आसन अर्थात बैठना। पुरा अर्थ समझे तो होता है उपर की ओर आसन लगा कर बैठना। पर क्यों बैठना तो इसका उत्तर है ध्यान में बैठना, चित्त को परमात्मा में लीन करने के लिए बैठना। मन को एकाग्र करने के लिए बैठना। काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, ईर्ष्या, और अहंकार से मुक्त हो कर बैठना।
जो व्यक्ति शक्ति के हर स्वरूप को समझकर साधना व उपासना करता है । उसे सिद्धि और शक्ति की प्राप्ति होती है।