काव्यगोष्ठियों में अक़्सर कवियो की संख्या अधिक हकिन्तु कोई श्रोता बनने तैयार नहीं। कुछ दूसरे की रचना स्वय के नाम से सुनाकर कवि होने का तमगा हासिल करना चाहता है तो कोई कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा वाली कहावत से स्वर मिलाने को तत्पर ए प परन्तु श्रोता दूर दूर तक नहीं दिखता।किसी को चिन्ता नहीं कि अब कवियों के साथ श्रोताओं की भी ज़रूरत है।