शिक्षण की प्रक्रिया को सुचारू रूप से संपादित करने के लिए शिक्षक का मानसिक रूप से स्वस्थ होना परम आवश्यक है। क्योंकि शिक्षण एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। वर्तमान में विभिन्न मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा यह सिद्ध भी हो चुका है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली मनोवैज्ञानिकता का दावा करती है लेकिन मनोविज्ञान का प्रयोग, मात्र छात्रों तक ही करना शिक्षा प्रणाली में असंतुलन पैदा करता है। जिस तरह छात्रों की शैक्षिक संप्राप्ति बढ़ाने हेतु विभिन्न प्रकार की प्रणालियों द्वारा उन्हें मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक रूप से संबल प्रदान किया जाता है ; क्या शिक्षकों के लिए इस प्रकार का स्वस्थ वातावरण प्रदान करने के बारे में नहीं सोचा जाना चाहिए ? छात्रों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए मनोवैज्ञानिक आधार पर जिस तरह अनुकूल वातावरण की पैरोकारी की जाती है उसी प्रकार शिक्षक का मानसिक रूप से तनाव मुक्त होना छात्रों मेंं शिक्षा का स्तर बढाने का एक महत्त्वपूर्ण आयाम हो सकता है। शिक्षक जब विद्यालय में छात्रों को कोई विषय पढ़ाता है , तो यह प्रक्रिया उसी समय शुरू नहीं होती, जब शिक्षक ने पढ़ाना शुरू किया है । दरअसल वह बिंदु या विषय शिक्षक के अंतर मन में पहले ही शुरू हो चुका होता है कि विषय या अध्याय को किस तरह छात्रों की समझ के अनुकूल बना कर पढ़ाया जाना है । जिससे कि उस विषय के बारे में छात्र बहुत अच्छी तरह समझ पाए । वास्तव में विद्यालय समय शिक्षक के लिए उन सारे तथ्यों के क्रियान्वयन का समय होता है, प्रदर्शन का समय होता है । जो उसने विद्यालय आने से पहले पढ़ाने की योजना के अंतर्गत एकत्रित किए है । केवल स्कूली समय ही शिक्षक के कार्य करने का समय नहीं है । स्कूली समय , पाठ्ययोजना के क्रियान्वयन का समय होता है । शिक्षक को स्कूल समय से पूर्व ही वह सारी सामग्री मानसिक रूप से एकत्रित करनी होती है ।जो कि छात्रों को प्रदान की जानी है । और अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रकार स्कूली समय से पूर्व ही बनाई गई योजना के अनुसार किया गया शिक्षण अत्यंत प्रभावी होता है । जिसके द्वारा छात्रों में शैक्षिक स्तर बढ़ाया जा सकता है । लेकिन वर्तमान व्यवस्था में प्राथमिक शिक्षक से इतने गैर शैक्षणिक कार्य कराए जाते हैं जिससे कि उसके मानसिक स्वास्थ्य पर तनाव हावी हो जाता है । शिक्षकों से कराए जाने वाले गैर शैक्षणिक कार्यों की लंबी सूची है । जिससे शिक्षक गैरशैक्षणिक कार्यों के मकड़जाल में फंस जाता है । इसका सीधा और खतरनाक असर छात्रोंं की शैक्षिक संप्राप्ति पर पड़ता है । इन्हीं गैर शैक्षणिक कार्यों में बी. एल. ओ ड्यूटी एक मानसिक प्रताड़ना की तरह है। चुनाव , कई प्रकार के सर्वे,तथा विभाग द्वारा मांगी जाने वाली वे सूचनाएं जो कई बार पूर्व में ही दी जा चुकी है । और वेे सूचनाएं विभाग के पास उपलब्ध होतीं है । यह सारी चीजें शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को ध्वस्त करने के लिए काफी होती है । नतीजतन जो योग्य उम्मीदवार लाखों की भीड़ को पीछे छोड़कर अपनी योग्यता के आधार पर इस विभाग से जुड़े थे । जिनके अंदर भरी ऊर्जा की ज्वाला जो इस देश को प्रकाशमान करने का आधार थी। धुआं धुआं हो कर सुलगते सुलगते समाप्त हो जाती है। दुर्भाग्य है इस देश का कि प्राथमिक शिक्षक सरकारी योजनाओं को लागू करने वाला एजेंट बनकर रह गया है ।
किसी को यह समझ नहीं आता कि तनावपूर्ण गैर शैक्षणिक कार्यों की बजह से असंतुष्ट शिक्षक किस प्रकार मानकों के अनुसार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर पायेगा ? आज के समय शिक्षण का कार्य गौण हो गया है, अन्य कार्य महत्वपूर्ण हो गये है । अगर देश के गरीबों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए कोई भी गंभीरता से सोचता है तो उसे शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना होगा। शिक्षक से सिर्फ़ शिक्षण कार्य ही करवाना होगा।
शिक्षक सिर्फ शिक्षण के लिये ।