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सिर्फ अंदर न जाने देने से ही शिवजी ने बालक का वध नहीं किया होगा

16 सितम्बर 2016

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शिवजी मेरे इष्ट हैं, उनमें मेरी पूरी आस्था है। दुनिया जानती और मानती है कि वे देवों के देव हैं, महादेव हैं। भूत-वर्तमान-भविष्य सब उनकी मर्जी से घटित होता है। वे त्रिकालदर्शी हैं। भोले-भंडारी हैं। योगी हैं। दया का सागर हैं। आशुतोष हैं। असुरों, मनुष्यों यहां तक कि बड़े-बड़े पापियों तक को उन्होंने क्षमा-दान दिया है। उनके हर कार्य में, इच्छा में परमार्थ ही रहता है। इसीलिए लगता नहीं है कि सिर्फ अंदर ना जाने देने की हठधर्मिता के कारण उन्होंने एक बालक का वध किया होगा। जरूर कोई दूसरी वजह इस घटना का कारण रही होगी। उन्होँने जो भी किया वह सब सोच-समझ कर जगत की भलाई के लिए ही किया होगा। घटना श्री गणेशजी के जन्म से संबंधित है, तथा कमोबेश अधिकाँश लोगों को मालुम भी है कि कैसे अपने स्नान के वक्त माता पार्वती ने अपने उबटन से एक आकृति बना उसमें जीवन का संचार कर द्वार की रक्षा करने हेतु कहा और शिवजी ने गृह-प्रवेश ना करने देने के कारण उसका मस्तक काट दिया। फिर माता के कहने पर पुन: ढेर सारे वरदानों के साथ जीवन दान दिया। पर माँ गौरी इतने से ही संतुष्ट नहीं हुईं, उन्होंने शिवजी से अनुरोध किया कि वे उनके द्वारा रचित बालक को देव लोक में उचित सम्मान भी दिलवाएं। शिवजी पेशोपेश में पड़ गये। उन्होंने उस छोटे से बालक के यंत्रवत व्यवहार में इतना गुस्सा, दुराग्रह और हठधर्मिता देखी थी जिसकी वजह से उन्हें उसके भविष्य के स्वरूप को ले चिंता हो गयी थी। उन्हें लग रहा था कि ऐसा बालक बड़ा हो कर देवलोक और पृथ्वी लोक के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। पर पार्वतीजी का अनुरोध भी वे टाल नहीं पा रहे थे इसलिए उन्होंने उस बालक के पूरे व्यक्तित्व को ही बदल देने का निर्णय किया। भगवान शिव तो वैद्यनाथ हैं। उन्होंने बालक के मस्तक यानि दिमाग में ही आमूल-चूल परिवर्तन कर ड़ाला। एक उग्र, यंत्रवत, विवेकहीन मस्तिष्क की जगह एक धैर्यवान, विवेकशील, शांत, विचारशील, तीव्रबुद्धी, न्यायप्रिय, प्रत्युत्पन्न, ज्ञान वान, बुद्धिमान, संयमित मेधा का प्रत्यारोपण कर उस बालक को एक अलग पहचान दे दी। उनके साथ-साथ अन्य देवताओं ने भी अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान कीं। जिससे हर विधा व गुणों ने उसे इतना सक्षम कर दिया कि महऋषि वेद व्यास को भी अपने महान, वृहद तथा जटिल महाकाव्य की रचना के वक्त उसी बालक की सहायता लेनी पड़ी। इन्हीं गुणों, सरल ह्रदय, तुरंत प्रसन्न हो जाने, सदा अपने भक्तों के साथ रह उनके विघ्नों का नाश करने के कारण ही आज श्री गणेश अबाल-वृद्ध, अमीर-गरीब, छोटे-बड़े सब के दिलों में समान रूप से विराजते हैं। इतनी लोक प्रियता किसी और देवता को शायद ही प्राप्त हुई हो।

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