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स्नान लीला

14 नवम्बर 2024

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 श्री राम लीला भाग 1 

॥स्नान लीला॥ 

जेठ की भरी दुपहरी है , मौसम बहुत ज्यादा गर्म है , आसमान मे सुर्य देव अपने
पुरे प्रताप के साथ चमक रहे है , साकेत धाम मे पुरी
अयोद्धा तेज गर्मी के कारण बहूत परेशान है ,  

अयोद्धया के बहुत से बूडे , जवान, और बच्चे इस गर्मी के मौसम मे सरयु नदी के तट पर ही अपने
पुरे दिन को बिताते है , बाकी जो सज्ज्न लोग होते
है , उन्हे अपने व्यवसायेक
काम के कारण इस गर्मी मे भी सरयु नदी के दर्शन का मौका भी नही मिलता , । 

सचमे प्रसन्न और अनंदीत तो बही लोग है , जिन्हे पैसे कमाने की कोई चिंता नही होती,  

सरयु के किनारे इस समय बहुत भीड है , और इस जेठ के मौसम मे तो साधु संतो की भीड और भी ज्यादा हो चुकी है , और इसी कारण से सरयु के तट पर इतना ज्यादा शोर शरावा हो
रहा है जिसकी आवाज स्वयम राज महल तक जा रही है , 

जहा इस समय श्रीराम अपने महल के ठंडे कमरे मे अपने अन्य भाईयो के साथ छुपन छुपाई खेल रहे है , अभी श्री राम की आयु पाच वर्ष की है , इस आयु मे श्री राम इतने ज्यादा सुन्दर लग रहे है जिसकी
कोई कल्पना अपने मन मे कर ही नही सकता ,  

उनके दोनो पैरो मे पायल है , और हाथ मे सोने के कग्गन , वे अपने कमर पर एक
कर्धोनी भी इस समय पहने हुए है , उन्होने इस समय एक पीले
रग की छोटी सी धोती पहनी हुई है जिसकी किनारो को सोने के तारो से पिरोया गया है , राम जी की आखे बहुत बडी बिलकुल कमल के समान है और उनकी आखो
मे इस समय काजल भी लगा हुआ है जिस्से उन्हे नजर ना लगे, 

ऐसे ही श्री राम चंद्र के अन्य भाई भी बहुत सुन्दर है और
उन्होने भी अपने शरीर पर विभिन्न –विभिन्न प्रकार के सुंदर आभुषण पहने हुए है , वे तीनो भाई इस समय महल की अलग अलग जगहो पर छिपे हुए है , और श्री राम चंद्र इस समय उन्हे ढुढ रहे है , जिसके कारण बे बहुत ज्यादा थक गये है और उनके माथे से
पसीने की बुदे झलकने लगी है जो किसी मोती की तरह दिखाई पढ रही है , 

भरत जी जो इस
समय एक बहुत बडे पत्थर के खम्बे के पिछे खडे हुए है उन्हे अपने बडे बाई को इतना
ज्यादा थकीत देखकर बुरा लगता है इसी लिए भरत उसी समय अपनी जगह पर खडे हुए थोडी सी
हलचल करते है जिस्से राम जी को भरत की जगह का पता लग जाता है और बे भरत को आसानी
से ढुढ लेती है ,  

अब श्री राम
लक्षमण को ढुढने लगते है , लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी उन्हे लक्षमण कही नही दिखते है , ,  

उसी समय भरत
जी श्री राम से कहते है की बडे भाई क्या
मे आपकी कुछ सहायता करु , राम जी उसी समय हसकर हा कह देते है , अब भरत जी की
सहायता से श्री राम लक्षमण और शत्रुघन को बहुत जल्दी ढुढ लेते है ,  

तभी लक्षमण जी
भरत जी से कहते है बडे भाई आपने राम भइया को हमारी छुपने बाली जगह को बता कर सही
नही किया, आपने हमे गलत तरीके से पकडा है ,  

इसी बात को
लेकर,भरत जी और लक्षमण जी के बीच मिठी तकरार होने
लगती है , लेकिन तभी वहा पर सुर्य वन्श के धुरंधर राजा दशरथ
आ जाते है ,  

पिता जी की
आया हुआ देखकर राम जी सीधे अपने पिता के पास जाते , और दरशरथ जी के सामने खडे हो कर और अपने दोनो हाथो को फैला कर
पिता जी के पैरो से चिपक जाते है ,,  

दशरथ जी उसी
समय राम को अपनी गौद मे उठा लेते है , और भरत के पास आकर पुछते है बेटा क्या हुआ तुम अपने छोटे भाई
से लड क्यो रहे हो ,  

भरत कहते है
पिता जी , मेंने तो बस भईया की मदद की थी , लेकिन लक्षमण मुझे से कह रहा है की मेंने छल से उन्हे पकडवाया है ,  

दशरथ जी भरत
की प्यारी , तुतलाती
हुई बोली को सुनकर बहुत अनंददीत हो जाते है , और लक्षमण से
कहते है तुम दोनो को आपस मे किसी भी बात के उपर लडना नही चाहिए ,  

बाल लक्षमण कह्ते
है पिता जी लेकिन भरत भइया ने मुझे छ्ल से पकढवाया है ,  

इस बात को
सुनकर दशरथ जी कहते है ठीक है तो इस बार भरत ने तुम्हे पकढवाया तो जब तुम दुवारा
खेलोगे तो तब तुम राम की सहायता करना भरत को पकढबाने के लिए ,  

ये सुनकर
लक्षमण जी बहुत खुश हो जाते है ,  

और कह्ते है
पिता जी हा मे अगली बार ऐसा ही करुगा ,  

तभी दशरथ जी
मुस्कुराते हुए , राम समेत
तीनो भाइयो से कहते है , चलो आज हम सब सरयु नहाने चलते है ,  

बस इस बात को
सुनना ही था की तीनो भाई आनंद से नाचते हुए कहने लगते है , आज हम सरयु नहाने ,
जाएगे , आज हम सरयु नहाने जाएगे, 

उसी समय एक
दासी आती है और ,दशरथ जी से
कहती है , महाराज हमने आपके कपडो को रथ मे रखवा दिया है अब
आप सरयु की तरफ प्रस्थान कर सकते है ,  

दशरथ उस दासी
से ठीक है कहकर अपनी दोनो विशाल भुजाओ पर
चारो भाईयो को कईया ले लेते है और जाने लगते है ,  

दासी इस दर्शय
को देखकर बहुत ज्यादा आनन्दीत हो जाती है ,  

राजा दशरथ की
दाए भुजा पर भरत और लक्षमण है और बाये भुजा पर राम , और शत्रुघन है ,इस दरशय को देखकर ऐसा लग
रहा है मानो सुर्य कुल के धुनरंधर अपने दोनो हाथो मे पुरे सन्सार को किसी फुल के
समान उठाए हुए ले जा रहा हो ,  

अब राजा दशरथ
सिंघ जैसी चाल चलकर अपने रथ के पास आ जाते है , और चारो भाईयो को उस रथ पर बैठा देते है , और खुद भी उस रथ पर चड जाते है ,  

तभी राजा
मन्त्री सुमंत से कहते चलो हमे सरयु के पास ले चलो , इस आदेश को सुनते ही सुमंत जी राजा दशरथ को सरयु की तरफ ले
जाने लगते है ,  

रास्ते मे
जाते समय जो भी लोग राजा दशरथ को देख रहे है बे सब  

अगला हिस्सा
भाग 2 मे  

   

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इस किताब मे भगवान की साकेत धाम लीलाओ के बारे मे बताया गया है ,कि भगवान साकेत धाम मे अपने भगतो के साथ कोन-कोन से लिला करते होगे इसमे भगवान के स्वभाव और उनके और भक्तो के साथ कि गई लिलाओ के बारे मे बताया गया है

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