मैंने ओशो को काफी पढ़ने और जानने का प्रयास किया हैl बहुत कुछ समझा है और बहुत कुछ समझ रहा सबसे बड़ी अमीरी शरीर की अमीरी मानी जाती और आज मैं उसी अमीरी की बात करूंगा जो हर इंसान बड़ी आसानी से हासिल कर सकता है l ओशो जी कहते हैं अगर हमारा शरीर दुरुस्त है तंदुरुस्त है तो हम अमीर हैं l परमात्मा किसी को गरीब नहीं बनाता आदमी अपनी गरीबी की शुरुआत अपने घर से करता है l सर्वप्रथम मनुष्य अपने बच्चों को संपूर्ण पोषण नहीं देता उसके पीछे उसकी दरिद्रता होती है l दरिद्रता भी उसकी अपनी ही पाली हुई डायन है l अब आप कहेंगे के दरिद्रता खुद कैसे पाली जा सकती है मनुष्य तो हमेशा सुख में रहना चाहता है अब यह दुख क्यों सहेगा ध्यान देने योग्य बात है मनुष्य परमात्मा को तो मानता है प्राकृतिक को नहीं मानता जब हम अपनी दिन चार्य की क्रिया को सही ढंग से नहीं करते तो हमारे घर में रोग आने लगते हैं महापुरुष कहते हैं के रोग और मुकदमा मनुष्य को गरीब से महा गरीब बना देता है अरस्तु जी ने कहा है अगर मनुष्य का पैसा चला जाए संपत्ति चली जाए तो समझो कुछ नहीं गया मनुष्य का स्वास्थ्य चला जाए तो समझो कुछ कुछ गया मगर अगर मनुष्य का चरित्र चला जाए तो समझो सब कुछ चला गया यूं समझो कि अगर मनुष्य शारीरिक रूप से बीमार है तो उसका मानसिक संतुलन भी कोई बढ़िया नहीं होगा और वह बीमार मानसिकता को ही जन्म देगा बीमार मानसिकता से बीमार समाज की रचना होती है और हमारा आस-पड़ोस बुरी तरह प्रभावित होकर गंदा माहौल उत्पन्न करने में हम खुद योगदान करते हैं अगर हमें सुख चाहिए तो हमें शुरुआत करनी पड़ेगी हमें अपना दिनचर्य सही करना पड़ेगा खानपान से ही करना पड़ेगा बीमारियों से बचने के लिए हमें खुद अपना इलाज करना पड़ेगा ठीक है की दवाइयां रोग दूर करती हैं मगर सुबह उठकर कसरत करना यह भी एक दवा दारू है सुबह उठकर योगासन ध्यान योग आदि करना यह भी एक दवा है दवाई है मगर हम सब इसको अपने जीवन का हिस्सा नहीं मानते यह सारा खेल हमारे जीवन में दुख घोल देता है और हम सुख से दूर रह जाते हैं।
मनजिंदर सिंह (शान)