तलाश
ना मानी किसी की ,ना सुनी किसी की...
जो कहता मेरा दिल गया ,लिखती वही बात दिल की गयी |
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बहती नदी की धारा हूंँ, ना ठहरे वो किनारा हूंँ...
मिलने को खुद से निकली हूंँ, तलाश में मैं खुद अपनी हूंँ |
वक्त के साथ चलती हूंँ, वक्त से दोस्ती रखती हूंँ...
बेक़दर इस दुनिया में ,बस वक्त की क़दर करती हूंँ |
भरोसा नहीं किसी पर अब, सपने देखने से डरती हूंँ...
टूटी हूंँ इस कदर अब, टूटे-फूटे शब्द लिखती हूंँ |
ख़यालात फिर भी कम नहीं मेरे, खुद पर भरोसा करती हूंँ,
बड़ी मेहनत से बनाया है खुद को, आईने में देखकर नाज़ करती हूंँ |
मुकद्दर में लिखा बदलना है मुझको, अपने मुकद्दर से ही लड़ती हूंँ...
दुनियाँ जहान के ढकोसलों से, मैं खुद को दूर ही रखती हूंँ|
है आस्था और विश्वास भी मुझे, याद भगवान को भी करती हूंँ...
लेकिन जिनसे है अस्तित्व मेरा, पहले प्रणाम उनको करती हूंँ |
तमन्ना गोयल
लालसोट (दौसा, राजस्थान)