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मैं एक साधारण सा आदमी हूँ .. मेरी सोच आध्यात्म का अनुसरण करती है .

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आज मैं जो महसूस कर रहा हूँ उसे अपने शब्दों में बयां करने की कोशिश करूँगा । आज का जो विषय है वो ये है कि हम दुःखी क्यों होते हैं..

1 अप्रैल 2016
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हमने अपने खुश होने का दायरा बहुत ही सिकोड़ लिया है, हमने अपनी ख़ुशी को दूसरों की सोच पर निर्भर कर लिया है, दूसरों के द्वारा किये गए स्वयं के प्रति जो व्यव्हार किया जाता है या जो सुना या कहा जाता है उसे ही हम खुश या दुखी होने का कारन समझ लेते हैं, ये कितनी बड़ी विडम्बना है, बचपन में हमारे काल्पनिक पात्र

मेरे विचार दुःख का संसार

1 मार्च 2015
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आज का दिन बड़ा ही उलट फेर लिए हुए था .. मेरे बस में कुछ भी नहीं ऐसा लगता है .. आज भी दुःख का एक ऐसा सैलाब उमड़ आता हैं मेरे ज़हन में . रोना चाहता हूँ बहुत सरे दुःख की नदियां बहा देना चाहता हूँ ..समंदर भर देना चाहता हूँ अपने ग़मों का की वो मुझे दोबारा तकलीफ ना पंहुचा सके . ..इसी उम्मीद में हूँ ..

हारना

27 फरवरी 2015
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मेरा मानना है की आप तब तक नहीं हारते जब तक की आप ये खुद न मानलें की आप हार चुके हैं ...अपने मनोबल को हमेशा अच्छा सोचकर बढ़ाते रहिये ..यह आप ही हैं जो हर पर अपने पास रहते हैं .

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