कैसे बताऊँ तुम्हे
मैं तुमसे कब से
और कितना
प्यार करता हूं?
संकोच होता है
कहने में।
'आप 'की जगह
'तुम' कहने में
और भी संकोच होता है।
मैं बीस का हूँ
और तुम चालीस पार।
पता है मुझे
तुम दो बच्चों की माँ हो।
पति भी है तुम्हारा।
बस स्टांप पर रोज़
देखता हूँ तुम्हें।
तुम बच्चों को पहुंचाने
और लाने जाती हो प्रतिदिन,
और मैं भाई को।
बाहें फैलाकर जब
बच्चे को बस से
नीचे उतारती हो,
मैं बस देखता रह जाता हूँ
निर्निमेष।
मृणाल दण्ड-सी सुडौल
गोरी बांहों को
अनुभव करता हूँ
अपने गले में
उसका दबाव।
मैं इन्तज़ार करता
पल्लू खिसकने का,
लेकिन निराशा ही
हाथ लगती।
ललाट पर लाल-लाल
गोल बिन्दी,
लगता है, पूरब क्षितिज पर
भगवान सूर्य का
हो रहा उदय।
माथे पर सिन्दूर की रेखा
मानो,लक्ष्मण रेखा हो।
गोरे गालों पर काला तिल
तुम्हारे सौन्दर्य का नज़र बट्टू
क्या खूब फलता है!
खनकती हुई तुम्हारी
उन्मुक्त खिलखिलाहट
बढ़ा देती है
दिल की धड़कन।
मित्र को जब
मैं ने बताया,
तो मेरे साथ
तुम्हे देखने आया।
जोर का अट्टहास लगाया।
नजरें नचाते हुए कहा-
अम्मां पर दिल आया है!
क्या सारी युवतियाँ
मर गई हैं?
पर मैं उस सिरफिरे
क क्या बताता?
प्यार में दिमाग सो जाता है
और जाग जाता है हृदय।
वह कब,कैसे,और कहाँ
किस पर आ जाए
उसे पता नहीं होता।
मित्र को मैं पागल कहता हूँ,
और वह मुझे।
भास्कर मिश्र
अनुभव करता हूँ