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ये सर्द शाम की तन्हा रातें

3 जनवरी 2022

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ये सर्द शाम की तन्हा रातें
कुछ अपनी और तुम्हारी बातें
एक तन्हा चाँद अकेला सा
घूमे आसमां वो बावरा सा
सिसक सिसक कर यादें बहती
ओश की बूंदे वो कहलाती
कोई ना समझे दर्द किसी का
कितना निःठुर कितना मतवाला
क्या आँशु उसके सस्ते हैं
ये आँशु सिर्फ उसी के गिरते हैं
लोग ओश उसे हीं कहते हैं
कहाँ मिला कोई पढ़ने वाला
जो भी आता हँस कर जाता
ये दिल का दर्द कभी ना जाता
बन कर शूल हृदय में चुभता
आँखों पर पट्टी बंधे हैं
सब स्वार्थबस सभी से बंधे हैं
कितना तन्हा कितना बेबस
कोई हाल कभी ना उसका जाना
जो चाँद सभी के ऊपर है
बेबस अपना दर्द कैसे सहता होगा
उदास लिए मन को अपने
जाने कैसे वो हर रात को रोशन करता होगा।

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