एक गज़ल
विलायत गया न वकालत पढ़ी है।चेहरों पे लिक्खी इबारत पढ़ी है।पढ़ी हैं किताबें, मगर बेबसी में लगाकर के दिल, बस मुहब्बत पढ़ी है।न कर जुल्म इतने के सब्र टूट जाये मेरे भी दिल ने बग़ावत पढ़ी है ।मुनाफे से कम कुछ न मंजूर इसको दुनिया उसूल-ए-तिज़ारत पढ़ी है | मुस्कुराये लब, तो ख