विलायत गया न वकालत पढ़ी है।
चेहरों पे लिक्खी इबारत पढ़ी है।
पढ़ी हैं किताबें, मगर बेबसी में
लगाकर के दिल, बस मुहब्बत पढ़ी है।
न कर जुल्म इतने के सब्र टूट जाये
मेरे भी दिल ने बग़ावत पढ़ी है ।
मुनाफे से कम कुछ न मंजूर इसको
दुनिया उसूल-ए-तिज़ारत पढ़ी है |
मुस्कुराये लब, तो खुश मान बैठे
दिल की भी तुमने क्या हालत पढ़ी है |
©योगेन्द्र सिंह "संजय"