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सता के भूखे शेर और राजनीति के गलियारे

27 फरवरी 2020

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जब भी सता के भूखे शेर इन राजनीति के गलियारों में आएंगे । हे मेरे मजहब की जनता ये यूं ही आग लगाएंगे। इनका ना कोई धर्म है ना कोई मजहब ये सता की खातिर यो ही आप को बरगलाएंगे। जब तक 6 वी पास इस देश को चलाएंगे इस मजहब को कई सालो तक यो ही जलाएंगे। जब भी सता के भूखे शेर इन राजनीति के गलियारों में आएंगे । हे मेरे मजहब की जनता ये यूं ही आग लगाएंगे। ये कभी हिन्दू तो कभी सिख बन जाएंगे लेकिन हर बार हिन्दू मुस्लिम के नाम की आग लगाएंगे। तुम लड़ोगे मरोगे आपस में धर्म और मजहब के नाम पर । और ये सता के भूखे शेर 5 साल तक राज करके चले जाएंगे । जब भी सता के भूखे शेर इन राजनीति के गलियारों में आएंगे । हे मेरे मजहब की जनता ये यूं ही आग लगाएंगे। ये सता के भूखे शेर जब भी सता में आएंगे। दुम दबा कर यू ही 5 साल छुप जाएंगे। लेकिन हे मेरे मजहब कि जनता ये सता के भूखे शेर जब जब भी सता से बाहर हो जाएंगे फिर कई सालो तक यू ही तांडव मचाएंगे। जब भी सता के भूखे शेर इन राजनीति के गलियारों में आएंगे । हे मेरे मजहब की जनता ये यूं ही आग लगाएंगे। ये सता के भूखे शेर जब जब भी इन राजनीति के गलियारों में आएंगे कभी इस मिट्टी की कसम खाएंगे तो कभी गाय को अपनी मां बताएंगे। लेकिन ये बेशर्म कभी नहीं शर्माएंगे हर बार नई आग लगाएंगे। जब भी सता के भूखे शेर इन राजनीति के गलियारों में आएंगे । हे मेरे मजहब की जनता ये यूं ही आग लगाएंगे। जब जब भी ये सता के भूखे शेर मौका पाएंगे सता की खातिर कभी राष्ट्रपति को अपना मोहरा बनाएंगे, तो कभी राजभवन का फेक्स बंद करके सो जायेंगे। हे मेरे मजहब कि जनता अब भी समय है तुम संभल जाना, या तो तुम एक हो जाना ,नहीं तो फिर कई सालो तक पछताना।

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नेता और आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता ।

27 फरवरी 2020
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नेता और आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है।दोनों एक ही मां की सन्तान होती हैंनेता बनने के लिए पहले आतंकवादी बनना पड़ता है।और एक सफल आतंकवादी ही नेता बन पाता हैदंगे पसाद एक सफल राजनीति का हिस्सा होते हैं।जब तक राजनीतिक पार्टियां दंगे फसाद नहीं करवा पाती,तब तक सता पर काबिज होने में असफल रहती हैं।

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सता के भूखे शेर और राजनीति के गलियारे

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खैर मैं ज्यादा कुछ कर नही सकता

12 अप्रैल 2020
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बार बार मेरे दिल में अनेक खयाल आते हैं, लेकिन पता नही कुछ समय बाद अपने आप क्यों शांत हो जाते हैं। बार बार लिखने के लिये कलम उठाता हूं, लेकिन कलम भी कुछ लिखने से ही पता नही क्यों अपने आप रुक जाती है। मुझे आज तक इस इंसान की इंसानियत समझ में नही आई । मैं कई बार सोचता हूं कि इंसान से तो पशु पक्ष

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