बहुत पुराने समय की बात जेठ की कड़कड़ाती धूप में धनुष बाण लिए स्वर्ण आभूषण से लादे पगडंडियों पर नंगे पैर दो बालक चले जा रहे थे उनके चेहरे लाल थे आँखें अंगारे सी दहक रही थी उन सुकुमारों को देखने से ऐसा प्रतीत होता था कि ये किसी राजा के सुपुत्र हैं थोड़ी दूर चलने पर उन्होंने अपनी धनुष फेंक दी फिर थोड़ी दूर आगे चलने पर अपनी तीर कमान फेंक दी फिर आगे चलने पर एक एक करके अपने रत्नजड़ित आभूषण फेंकते हुए आगे बढते रहे धीरे धीरे उन बालकों ने सब उतार कर फेंक दिए और वहीं पीपल की सीतल छाया के नीचे बैठ गए ये सब एक मनुष्य देख रहा था उसका हृदय द्रवित हो उठा वो खुद को रोक नहीं सका और तेज क़दमों से लंबे लंबे डग भरता हुआ हुआ उन दोनों राजकुमारों के पास पहुंच गया और उनसे पूछा ।
हे सुकुमारों आप लोगों ने इस तरह एक एक कर सब कपडे,जेवर,धनुष बाण उतार कर फेंक दिये ऐसी चिलचिलाती धूप में नंगे बदन कहाँ चले जा रहे हो आखिर कौन हो आप लोग देखने से तो किसी कुल के राजकुमार लगते हो ।
यह सुनते ही वो दोनों राजकुमार आपस की बातचीत को बीच में रोककर बताने लगे ।
आदरणीय मैं अयोध्या नगरी के चक्रवर्ती सम्राट श्री दशरथ का पुत्र राम हूँ और दूसरा सुकुमार मेरा छोरटा भाई लक्ष्मण है हम लोग महर्षि विश्वामित्र के शिष्य हैं हम लोग अपने गुरु की आज्ञा से पृथ्वी के सबसे बुद्धिमान व् दानी कुल की खोज में निकले हैं पूरे एक मास से दिन रात भटक रहे हैं परंतु अभी तक सफलता हासिल नहीं हम लोगों ने रास्ते में एक घर में पूजा करते हुए ब्राम्हण को देखा जो श्लोक का पाठन कर रहा था और शंख से मधुर ध्वनि निकाल रहा था हम समझे सबसे बुद्धिमान व्यक्ति यही होगा और ज्ञान दे रहा है सबसे बड़ा दानी यही होगा हम आचार्य के पास पहुंचे आचार्य से सारा किस्सा सुनाया आचार्य ने कहा कि कागज कलम दावात किसने बनाया अक्षर किसने बनाया शंख को किसने बनाया किशने सबसे पहले उसमे फूँककर आवाज निकाली सबसे बुद्धिमान तो वो हुआ उसके पदचिन्हों पर चलने वाला तो उसका शिष्य हुआ ।
सुन कर हम समझ गए कि हम गलत हैं फिर हम लोग निकल पड़े हमने युद्ध में क्षत्रियों को मौत से लड़ते देखा और दुश्मन को बड़ी चतुराई से पछाड़ते देखा हमे लगा दुनिया का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति क्षत्रिय होता है और युद्ध में अपने प्रण न्योछावर करता है सबसे बड़ा दान यही होगा मगर हमारे गुरूजी ने गलत साबित करते हुए कहा कि सर्वप्रथम औजार किसने बनाया और इसका उपयोग किसने बतलाया युद्ध कला को किसने सिखाया वो बुद्धिमान हुआ और किसी को दान कर दिया वो दानी हुआ ये तो अनुचर हैं ।
फिर हम लोग एक बाजार में पहुंचे वहां वैश्य की प्रकाण्ड बुद्धि का परिचय पाया हमने देखा कितनी बुद्धि से वो पैसे का लेनदेन करता है कितनी चतुराई से सामान की तौल तराजू से करता है हम कई दिनों तक उसके पास बैठे मगर ये अंकगणितीय योग सीख नहीं पाये हमें एहसास हो गया कि हमारी खोज पूर्ण हो गयी है जब हम अचंभित होकर वैश्य के कार्य व चतुराई का वर्णन कर रहे थे आचार्य जी मुस्कुरा रहे थे और बड़े ही प्यार से उन्होंने पुकारते हुए कहा अरे मेरे भोले राजकुमारों उस वैश्य के तराजू,बटखरे को जिसने बनाया वो कौन था उसी ने उस वैश्य को अंकगणितीय योग भी सिखाया होगा वो सबसे बुद्धिमान होगाऔर उसने दान कर दिया सबसे बड़ा दानी हुआ ।
हम लोग परेसान हो गए हैं थक गये हैं ये अत्यंत प्रिय कपड़े ये जेवर हमारी रक्षा करने वाले ये धनुष बाण हमें बोझ लगने लगे इन्हें लेकर हम आगे नहीं बढ़ सकते इस लिए हमने इन्हें उतार कर फेंक दिया हम लोगों का समय भी ख़त्म हो रहा है महर्षि के आश्रम पहुंचना है अभी तक उत्तर तलास करने में हम लोग असमर्थ रहे हैं यदि आप कुछ मदद करें सकें तो महान दया होगी।
उन बालकों का बात सुनकर उस बूढ़े व्यक्ति की आँखें नम हो गयी उसने उस बालक से कहा हे राजकुमार आओ मेरे साथ चलो मैं आप लोगों को दुनिया के सबसे बुद्धिमान कुल से मिलवाता हूँ ।
वो आदमी उन दोनों बालकों को अपने घर ले गया उसकी झोपडी में अनेक अस्त्र,शस्त्,कलम-दावात,स्वर्ण आभूषण काष्ठ की अनेकों कारीगरी की चीजें टूटी-फूटी-समूची रखी थी कौतुहल बस उन बालकों ने उनसे पूछा आप के यहाँ ये सब चीजे कैसे रखीं हैं उस बृद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा पहले जल पान कर लो फिर सारी कथा सुनाता हूँ ।
उन बालकों ने जल्दी जल्दी जलपान किया और कथा सुनने के लिए बैठ गए उन्होंने कौतुहल से कहा बताइये आदरणीय दुनिया में सबसे बुद्दिमान और दानी कौन है उस वृद्ध ने कहा सुकुमारों आप लोग जाइये और जो कुछ भी यहाँ देखा समझा उसे गुरुजी से कहियेगा वो समझ जायेंगे और आप का उत्तर वही बता देंगे उन बालकों को कुछ समझ में नहीं आया उन्होंने फिर से प्रश्न दुहराया बृद्ध ने कहा आप लोग जाइये आप के आचार्य आप को सब बता देंगे।
वो दोनों सुकुमार भ्रमित से आश्रम की तरफ लौट आये शायं संध्या वंदना के बाद महर्षि विश्वामित्र ने पूछा शिष्यों जबाब मिल गया दोनों शिष्य आचार्य विश्वामित्र के पैरों पर गिर पड़े और सारा बृत्तांत सुना दिया कैसे वृद्ध मिला उसकी टूटी फूटी कुटिया और उसके द्वारा कही गयी बातें अंत में उन बालकों ने कहा .
हे आचार्यपद हम बात समझ नहीं पाये आप बताइये तब आचार्य विश्वमित्र ने कहा क्या तुम दोनों ने उनका आशीर्वाद प्राप्त कर लिया उन दोनों सुकुमारों ने नहीं में सिर हिलाया आचार्य विश्वामित्र ने कहा तुरंत जाओ पहले उनका आशीर्वाद प्राप्त करके आओ क्यूँ की बिना उनके आशीर्वाद के कुछ भी नहीं कर सकोगे वे जब तक तुम्हारी मदद नहीं करेंगे तब तक तुम जीवन में कोई कार्य पूर्ण नहीं कर सकोगे ।अब उन सुकुमारों को कुछ समझ नहीं आया उन्होंने आखिर गुरूजी से कहा गुरुवर कौन हैं वो जिनके पास कुछ नहीं वो हमारी मदद कैसे करेंगे तब महर्षि विश्वामित्र ने कहा वो आदि देव के वंशज हैं ब्रम्हाण्ड के सभी चर-अचर के रचयिता भगवान् आदि विश्वकर्मा के पुत्र/पौत्र हैं और सब कुछ दान करके खुद भोग विलास से दूर हैं जब तक मनुष्य सांसारिक जीवन में जीवित रहेगा उनके ज्ञान की उनके द्वारा बनाई गयी वस्तुओं की आवश्यकता अवश्य पड़ेगी इसलिए हे राजकुमारों तुरंत जाओ और उनका आशीर्वाद प्राप्त करो और उनके चरणों में मेरा प्रणाम कहना।
इतना सुनते ही दोनों सुकुमार भौचक्के हो गए और उसी कुटी की तरफ भागे जहाँ श्री विश्वकर्मा से मुलाकात हुई थी दौड़ते दौड़ते उन्हें महर्षि विश्वामित्र की बात याद आने लगी कुटी में रखे टूटे-फूटे-अधूरे सामान को याद करते हुए सोचने लगे
जिसने कलम दावात बनाई अक्षर बनाया लिखना पढ़ना बताया शंख बनाई ध्वनि बजाया और दान कर दिया वो सबसे बुद्धिमान और सबसे बड़ा दानी श्री विश्वकर्मा ही हैं ।
जिसने अश्त्र-शस्त्र बनाया युद्ध कला कौशल सिखाया और दान कर दिया वो श्री विश्वकर्मा हैं ।
जिसने तराजू बनाया अंक गणितीय योग बनाया तौल बनाया और दान कर दिया अर्थात वो श्री विश्वकर्मा ही हैं
इतना सोचते सोचते वो कुटी में आ गए झाँक कर देखा तो वो बृद्ध बैठा दिखाई दिया दोनों दौड़ कर उनके चरणों में गिर पड़े महर्शि विश्वकर्मा ने उन्हें चिरंजीव भवः का आशीर्वाद दिया और उन्हें उठाया और उन राजकुमारों से महर्षि विश्वामित्र के बारे में पुछा उन सुकुमारों ने कहा की आचार्य जी ने आप के चरणों में प्रणाम कहा है महर्षि विश्वकर्मा ने एव मस्त का आशीर्वाद दिया और सुकुमारों से कहा जब भी तुम्हारे जीवन में अन्धकार होगा जब कुछ भी नहीं समझ आएगा तब हमारे बच्चे तुम्हारा उपकार करेंगे चिरंजीव भवः।
इस बात को बहुत साल बीत गए जब माता सीता को रावण हरण करके लंका ले गया रामचंद्र जी रामेश्वरम में पूरे दल बल सेना के साथ पहुंचे मगर आगे विशाल सागर देख कर दुःखी हो गए तब महर्षि विश्वकर्मा के दो पुत्र नल-नील ने सागर में सेतु का निर्माण किया और भगवान् श्री रामचंद्र जी को लंका पहुंचाया राम रावण का युद्ध हुआ रामचंद्र जी विजयी हुए।भगवान् श्री विश्वकर्मा के द्वारा बनाये पुष्पक विमान के पास पहुंचे फिर आँख बंद करके मन में भगवान् श्री विश्वकर्मा को प्रणाम करते हुए कहा हे ब्रम्हाण्ड के रचयिता सर्वेश्वर मैं आप को प्रणाम करता हूँ टीसता आज्ञा चाहता हूँ अपने रथ में बैठने की अनुमति दीजिये तथा आप के पुत्रों को बहुत बहुत आभार जिन्होंने सेतु का निर्माण किया और हमको लंका तक पहुचाया है। हे शर्वेश्वर आप की पूजा बारम्बार करता हूँ।
इतना कहकर पुष्पक विमान में बैठ कर अयोध्या पहुंचे।
उपर्युक्त लेख शास्रों के साक्ष्यों पर आधारित है कृपया किसी भ्रम संशय के लिए संपर्क करें ।
रजनीश मार्तण्ड
राष्ट्रीय महासचिव
विश्व.विकास सुरक्षा समिति(रजि0)
9455502007