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लगाओ मत कोई बंधन ..

8 फरवरी 2018

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रिवाजों और रस्मों के पुराने इन ठिकानों में , करो मत कैद हमको सोच के छोटे मकानों में ! सफ़र करने दो हमको ,ऊँचे -ऊँचे आसमानों में , लगाओ मत कोई बंधन हमारी इन उडानो में ! हुनर है ..हौसला है ..है लगन ..साहस "शशी " हम में ! है ऊँचा आसमा हम में ,है महकी सी जमीं हम में ! "शशी "खुशबू हैं हम ..महाकायेंगे सारे ज़माने को , करो मत कैद हमको छोटे -छोटे फूलदानो में ! सफ़र करने दो हमको ऊँचे -ऊँचे आसमानों में ! 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼 डॉ .शशि जोशी "शशी "

शशि जोशी -शशी - की अन्य किताबें

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ग़ज़ल

1 फरवरी 2018
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बंटवारे की पीड़ा सहती ,ये बेचारी दीवारें !किसको अपना दर्द बताएँ ,वक़्त की मारी दीवारें !छोड़ के अपना गाँव ,शहर तुम निकले थे जब खुशी -खुशी ,उस दिन फूट -फूट के रोई ,घर की सारी दीवारें !एक खंडहर की सूरत में ,वीराने में पड़े -पड़े -किसका रस्ता तकती हैं ,ये टूटी -हारी दीवारें !देख रही हैं गुमसुम होकर ,हिस्सा

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ग़ज़ल

2 फरवरी 2018
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हर कोने में प्यार की खुशबू बिखरा दे !खोल दे मौला ,बंद दिलों के दरवाज़े !शहर कोई अब पत्थर में तब्दील न हो !सबके भीतर एक धड़कता दिल जागे !उफ़ !जाने ये कैसी तुझसे प्रीत लगी ,मॆरी नींद भरी आँखों में तू जागे !दिल के रिश्तों में इतनी सच्चाई दे ,कभी न टूटे किसी की चाहत के धागे !बस तू ही तू मेरे भीतर -बाहर है

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ग़ज़ल

3 फरवरी 2018
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ज़िंदगी को प्यार की मीठी जुबां देता हुआ !धीरे -धीरे वो मॆरी धड़कन का इक हिस्सा हुआ !फूल में !चन्दा ,सितारों..तितलियों के पंख पर ,ख्वाब मेरा ,आसमां सा ,दूर ..तक फैला हुआ !बेवजह तुझसे शिकायत क्यों करूँ मेरे खुदा !ज़िंदगी में आज तक जो भी हुआ ,अच्छा हुआ !इन अँधेरों से भला ,अब खौफ क्यों होगा मुझे ?मेरे भीतर

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लगाओ मत कोई बंधन ..

8 फरवरी 2018
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रिवाजों और रस्मों के पुराने इन ठिकानों में ,करो मत कैद हमको सोच के छोटे मकानों में !सफ़र करने दो हमको ,ऊँचे -ऊँचे आसमानों में ,लगाओ मत कोई बंधन हमारी इन उडानो में !हुनर है ..हौसला है ..है लगन ..साहस "शशी " हम में !है ऊँचा आसमा हम में ,है महकी सी जमीं हम में !"शशी "खुशबू हैं हम ..महाकायेंगे सारे ज़मा

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समय -समय की बात है !

14 मार्च 2018
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आप विद्वज्जनो के समक्ष समीक्षार्थ अपना प्रयास रख रही हूँ !🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼मूल्य बड़े ,पैसा था छोटा !अपनेपन का नहीँ था टोटा !सब मिलकर हँसते -गाते थे !निश्छल मन से बतियाते थे ! लेकिन ,मौसम बदल गए अब ! प्यार भरे दिल किधर गए अब ? क़दम -क़दम पर छल प्रपंच है !

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चलो ! भरो अब नई उड़ान !

16 मार्च 2018
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मॆरी कलम से -🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼खुला हुआ सारा अम्बर है !किन गिद्धों का तुमको डर है ?साधो अपने तीर कमान !चलो !! भरो अब नई उड़ान !अपनी शक्ति को तुम भाँपो !अपनी क्षमताएं खुद आँको !अपने भीतर घूम के आओ !कभी -कभी खुद से बतियाओ !तब होगी खुद की पहचान !चलो !भरो अब नई उड़ान !चलो !! ये रोना -धोन

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