ग़ज़ल
बंटवारे की पीड़ा सहती ,ये बेचारी दीवारें !किसको अपना दर्द बताएँ ,वक़्त की मारी दीवारें !छोड़ के अपना गाँव ,शहर तुम निकले थे जब खुशी -खुशी ,उस दिन फूट -फूट के रोई ,घर की सारी दीवारें !एक खंडहर की सूरत में ,वीराने में पड़े -पड़े -किसका रस्ता तकती हैं ,ये टूटी -हारी दीवारें !देख रही हैं गुमसुम होकर ,हिस्सा