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कविता

19 जून 2017

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मित्रों ! सादर प्रणाम | सपनों में आकर करते हैं पिता सदा संवाद । अपनों में अपनापन ढूँढ़ो छोड़ो वाद विवाद || इस मिट्टी में पले बढ़े सब हाड़-मांस के पुतले | जाति-धर्म के पैमाने पर क्यों कैसा परिवाद || राजनीति की चौड़ी गलियों के हैं सँकरे सोच | सड़ी व्यवस्था देख रहा हूँ जिससे रिसे मवाद || जीवन ऐसे जियो सँभाले रखना तुम मकरंद | ऐसा कुछ मत करो लगे जीवन तुमको बेस्वाद || चुप रह लेना,कम खा लेना,दम भी रखना खूब | संयम है आचार-संहिता , टूटे नहीं फ़वाद || नोट : फ़वाद (फारसी शब्द ) = दिल ||©ब्रह्मदेव शर्मा ||

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