मित्रों !
सादर प्रणाम |
सपनों में आकर करते हैं पिता सदा संवाद ।
अपनों में अपनापन ढूँढ़ो छोड़ो वाद विवाद ||
इस मिट्टी में पले बढ़े सब हाड़-मांस के पुतले |
जाति-धर्म के पैमाने पर क्यों कैसा परिवाद ||
राजनीति की चौड़ी गलियों के हैं सँकरे सोच |
सड़ी व्यवस्था देख रहा हूँ जिससे रिसे मवाद ||
जीवन ऐसे जियो सँभाले रखना तुम मकरंद |
ऐसा कुछ मत करो लगे जीवन तुमको बेस्वाद ||
चुप रह लेना,कम खा लेना,दम भी रखना खूब |
संयम है आचार-संहिता , टूटे नहीं फ़वाद ||
नोट : फ़वाद (फारसी शब्द ) = दिल
||©ब्रह्मदेव शर्मा ||