केरल में प्रलयंकारी बाढ़ आई है, सब कुछ तहस-नहस हो गया!कायदे से तो ये होना चाहिए था कि सभी को निर्विवाद रूप से केरल के लिये प्रार्थना करनी चाहिए थी,यथासंभव मदद करना चाहिए था .मदद करने वाले लोग तो बिल्कुल बिना किसी भेदभाव के बचाव एवम राहत कार्य कर रहे हैं लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ गैर जरूरी बहस चल रहा है!
कुछ लोगों को लगता है कि केरल का देश के विकास में कोई योगदान नहीं, कुछ लोगों को लगता है केरल के लोग देशभक्त नहीं है इसलिए केरल को जितनी सहायता मिल गई काफी है अब और नहीं मिलना चाहिए!
कुछ लोग केरल में प्राकृतिक आपदा आने के पीछे ऐसे कुतर्क दे हैं जिसका कोई मतलब नहीं है,ऐसे लोगों से अगर आप दूसरे राज्य में प्राकृतिक आपदा आने के कारण पूछेंगे तो शायद इनके पास कोई जवाब नहीं होगा!
दूसरी तरफ ऐसे लोगों की भी फौज है जो केंद्र सरकार को सिर्फ केरल को 500 करोड़ देने और यूएई के 700 करोड़ के सहायता राशि के प्रस्ताव को ठुकराने के लिए कोस रहे हैं!केरल को केंद्र सरकार द्वारा कितनी राशि मिलनी चाहिए ये जरूर एक बहस का विषय है ,इस पर खुलकर बात भी होनी चाहिए और सही लगे तो केंद्र सरकार की आलोचना भी होनी चाहिए लेकिन यूएई के प्रस्ताव ठुकराने पर केंद सरकार की आलोचना वाजिब नहीं है!दिसंबर 2004 से भारत ने एक नीति बनाई हुई है जिसके तहत प्राकृतिक आपदा के समय भारत दूसरे देश की सहायता राशि को स्वीकार नहीं करता है!हमारा देश इतना सक्षम हो चुका है कि किसी भी प्राकृतिक आपदा से अपने दम पर उबर सकता है।ये अपने देश के स्वाभिमान से जुड़ा मामला है!हालांकि 2004 से पहले भारत विदेशी सहायता राशि स्वीकार करता था लेकिन 2004 के बाद से आये अमेरिका, रूस ,जापान सहित कई देशों की सहायता राशि को भारत ने स्वीकार नहीं किया!
अंत में केरल का देश के विकास में शून्य योगदान बताने वाले लोगों को कुछ तथ्य बता देना जरूरी है!ऐसे लोगों को मालूम होना चाहिए केरल मानव विकास के सूचकांक में अव्वल दर्जे पर है.देश के दूसरे हिस्से की तुलना में केरल में शिशु मृत्यु दर सबसे कम है, जनसंख्या वृद्धि दर के मामले में भी निचले पायदान पर है. केरल में साक्षरता दर लगभग शत प्रतिशत है।केरल का स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे बढ़िया माना जाता है । देश में भेजे जाने वाली कुल विदेशी मुद्रा में केरल का सबसे बड़ा योगदान होता है.