26 जुलाई 2021
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आहिस्ता आहिस्ता, मुझमें तू आ खुद को हो ना खबर, रुह में यूं समा रहे सांसें थमी थमी, रहे नब्ज जमी जमी सुनें धड़कनों की सदा, दोनों यहाँ,दोनों यहाँ सर्दियों के नर्म धुप में, तेरे मेरे अक्स जब जमीं पे पड़ते हैं ऐसा लगता है जैसे, बादलों के दो टुकड़े जमीं पे झुमते हैं आओ झु
बिन तेरे, मुझमें कहीं, कोई कमी सी है। पलकों के, सुर्ख चादरों पे, कुछ नमी सी है। किस जहां में हो गुम,लौट के आ जाओ तुम, ये दिल कह रहा है।