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आरम्भ है प्रचण्ड, बोले मस्तकों के झुंड...

13 अक्टूबर 2015

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पहली बार हिंदी सिनेमा गुलाल में ये गीत सुना था , तब से सी बहुत पसंद है. शेयर कर रहा हूँ , बताइयेगा कैसी लगी ! आरम्भ है प्रचण्ड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घड़ी की तुम गुहार दो आन बान शान या कि जान का हो दान आज इक धनुष के बाण पे उतार दो आरम्भ है प्रचण्ड… मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले, वही तो एक सर्वशक्तिमान है कृष्ण की पुकार है, ये भागवत का सार है कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है कौरवों की भीड़ हो या पांडवों का नीड़ हो जो लड़ सका है वो ही तो महान है जीत की हवस नहीं, किसी पे कोई वश नहीं, क्या ज़िन्दगी है ठोकरों पे मार दो मौत अंत है नहीं, तो मौत से भी क्यों डरें, ये जा के आसमान में दहाड़ दो आरम्भ है प्रचंड… वो दया का भाव, या कि शौर्य का चुनाव, या कि हार का वो घाव तुम ये सोच लो या कि पूरे भाल पे जला रहे विजय का लाल, लाल यह गुलाल तुम ये सोच लो रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो या कि केसरी हो ताल तुम ये सोच लो जिस कवि की कल्पना में, ज़िन्दगी हो प्रेम गीत, उस कवि को आज तुम नकार दो भीगती मसों में आज, फूलती रगों में आज, आग की लपट का तुम बघार दो आरम्भ है प्रचंड…
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हरिवंश परसाई जी की कहानी - दो नाक वाले लोग !

13 अक्टूबर 2015
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मैं उन्हें समझा रहा था कि लड़की की शादी में टीमटाम में व्यर्थ खर्च मत करो।पर वे बुजुर्ग कह रहे थे - आप ठीक कहते हैं, मगर रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी।नाक उनकी काफी लंबी थी। मेरा ख्याल है, नाक की हिफाजत सबसे ज्यादा इसी देश में होती है। और या तो नाक बहुत नर्म होती है या छुरा बहुत तेज, जिससे छोटी-सी बा

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आरम्भ है प्रचण्ड, बोले मस्तकों के झुंड...

13 अक्टूबर 2015
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पहली बार हिंदी सिनेमा गुलाल में ये गीत सुना था , तब से सी बहुत पसंद है. शेयर कर रहा हूँ , बताइयेगा कैसी लगी !आरम्भ है प्रचण्ड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घड़ी की तुम गुहार दोआन बान शान या कि जान का हो दान आज इक धनुष के बाण पे उतार दोआरम्भ है प्रचण्ड…मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले, व

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तूक बंदी !

13 अक्टूबर 2015
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कुछ अपनी भी लिखूंगा , पर फ़िलहाल दुसरो की ही शेयर करता हूँ , बहुतो से बहुत कुछ सीखा हूँ , पहले उनकी तो कह दू ।अपने बारे में कहना मुझे पसंद नहीं, मैं तो नौ-सीखिया हूँ लिखता हूँ, मिटाता हूँ,, भूलता हूँ,सिखाता हूँ|अपना प्यार और आशीर्वाद बनाये रखियेगा , फिर मिलता हूँ

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शहर की दोस्ती|

13 अक्टूबर 2015
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"फिर मिलियेगा ", उसने कहा."जरूर ", मैंने कहा.बहुत दिनों बाद युहीं मिल गए थी उस दिन रस्ते में अचानक. ना उन्होने हमारा पता पूछा, ना मैंने उनका. शहर की दोस्ती ऐसे ही चलती है|

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मशीन

13 अक्टूबर 2015
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बहुत दिन हो गए अपना घर छोड़े हुए , नहीं तो पहले जब रातो को सोता था तो सपने घर की ही आते थे. नीन्द में किसी की आवाज़ सुनायी देती थी तो लगता था पड़ोस के चरवाहों की आवाज़ है , और जब अचानक नींद खुल जाती तो एहसास होता की सैकड़ो किलोमीटर दूर हैं. धीरे धीरे वक़्त बदल गाया| अब गॉव सपने में नहीं आता , पर अब रातो

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