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आरम्भ है यह अंत का

16 अगस्त 2020

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आरम्भ है यह अंत का -

अंत की घड़ी है अब

ना तुम्हारी ना ही हमारी

सब की अंतिम कड़ी है अब

जीने के ही नहीं ,

मारने के भी अलग अलग ढंग है अब

अंत की कड़ी है अब

जीवन मरण की अंतिम कड़ी है अब


आत्म दान का समय है यही है उचित ,

सृष्टि चक्र थमने का समय यही सही यही उचित

महा प्रस्थान का समय अब गया है

जीवन का यह अंतिम चरण अब सब को ले डूबा है

प्रकृति भी नाराज़ है अब ,

दुष्कर्मो से हमारे सब ,

ले रही है एवज़ वो हमसे

कभी विषाणुओं से तो कभी चट्टानों से

ख़ुदा भी अप्रसन्न है ,

बर्बादी से उसके ईमान की ,

आत्मा भी अब हर गयी ,

दुविधाओं से इन तन की ,

अंत की घड़ी है अब

जीवन मरण की अंतिम कड़ी है अब



अब किसी को किसी की क़दर नहीं

क़दर करने वाले भी ख़ुदा से रूबरू हो गए

हासिल करने के लिए अब कुछ बचा नहीं

क्यूँकि जो हासिल करना था वो भी फ़रिशते ले गए

अब तो मरने वालो की भी दिली आरज़ू है

मरने से पहले एक एक आख़री ख्वाहिश

एक अंतिम उत्कंठा है

की हम जो कर गुजरे है

अब करना है तुम्हीं को उसका निवारण

अपनी ग़लतियों को सुधार

सद्गति के मार्ग पर चलकर

अब करना है तुम्हीं को शुद्ध आचरण

अंत की घड़ी है अब

जीवन मरण की अंतिम कड़ी है अब

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way too good poem loved it

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