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कवित

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आरम्भ है यह अंत का -अंत की घड़ी है अब ना तुम्हारी ना ही हमारी सब की अंतिम कड़ी है अबजीने के ही नहीं ,मारने के भी अलग अलग ढंग है अब अंत की कड़ी है अब जीवन मरण की अंतिम कड़ी है अब आत्म दान का समय है यही है उचित ,सृष्टि चक्र थमने का समय यही सही यही उचित महा प्रस्थान का

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तमासा बन गयी है जिंदिगी बस आपा-धापी में | वक्त बिता ही जाता है पर ओ आयेगे नहीं दिल में || तमासा ओ बने, मै सदमे तक अपने को ले जाऊ| नहीं ये आरजू मेरे, तमासा खुद मै बन जाऊ ||

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