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•||अब्दुल और रामलाल||•

26 सितम्बर 2020

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#बात 2014 की है यूपीए से परेशान रामलाल सत्ता में बदलाव चाहता था रामलाल के अंदर गजब का उत्साह था वो अब किसी बोलते हुए आदमी को देश का सरपंच देखना चाहता था इसके पीछे एक वजह थी रामलाल अब्दुल से बहुत नफरत करता था और करे भी क्यूं न इसी अब्दूल ने पाकिस्तान, बांग्लादेश रामलाल से छीन लिया.


रामलाल एक प्राइवेट कंपनी में 18 हजार रुपये महीने की तनख्वाह पाता था रामलाल इतना खुश था जिसको मापा नहीं जा सकता! मैं आपको बताता हूं रामलाल खुश क्यूं था. अब्दुल के चार बच्चे थे नफीस, सोहेल, उस्मान, उवैश अब्दुल ने जैसे तैसे कर के इनका दाखिला सरकारी विद्यालय में करा दिया, अब्दुल की पंचर बनाने की रोड किनारे दुकान थी. अब्दुल का घर जैसे तैसे चल रहा था मगर रामलाल तो ठहरा अब्दुल का दुश्मन वो यह कैसे देख सकता है भला!


फिर एक दिन ऐसा आया शायद अब्दुल के लिए कयामत वाला दिन था अचानक से सरपंच ने अब्दुल के पुराने कागज मांग लिए अब्दुल ठहरा अनपढ़ गंवार पंचर वाला वो पुराने कागज कहां से दिखाए! मगर रामलाल और रामलाल के दोनों बच्चों का खुशी का ठिकाना नहीं था हों भी क्यों न आखिर अब्दुल रोड पर जो आ गया. रामलाल के बच्चे पूरा दिन चेहरे वाली किताब पर ' कागज दिखाओ कागज दिखाओ का नारा लगाने लगे '


कुछ समय बाद एक बीमारी आई ऐसी बीमारी जो छूने से फैल जाती हो. अब्दुल और रामलाल दोनो भौचक्का हो गए थे कि ये कौन सी बीमारी है जो जान भी ले लेती है. बाद में कुछ बत्तखकार खुलाशा करते हैं कि ये बीमारी अब्दुल के भाई भतीजों ने फैलाई है अब तो रामलाल अब्दुल का जानी दुश्मन बन गया था


बीमारी ज्यादा बढते देखते हुए सरपंच ने सब कुछ बंद कर दिया. लगातार बंद रहा ! मगर अब्दुल पंचर बना कर 50 रु कमा लेता था रामलाल को 1 महीने घर बैठे तन्खाह मिली. उसके बाद उसे नौकरी से हटा दिया. अब रामलाल और अब्दुल बराबर हो चुके थे रामलाल को कुछ न मिलने की वजह से अब्दुल की बराबर में चाय की दुकान खोल ली. अब जो पंचर बनवाने आता है समय लगने के कारण रामलाल की चाय और और पकौड़ी भी खा लेता है

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