घुटनों के बल चलते चलते,ना जाने कब हम खड़े हो गये
बोझ किताबों का उठाते उठाते,ना जाने कब हम बड़े हो गये
जो था साथ खेलता,साथ बैठता,बो दोस्त मेरा छूट गया
फिर धीरे से आयी आवाज कहीं से,की बचपन तेरा बीत गया.....
जंहा हैं यादे मेरी भरी हुयीं,बो घर भी मुझसे रूठ गया
जहां गुजर गया है सारा बचपन,आज बो आंगन मेरा छूट गया
प्यार मोहब्बत हसी ठिठोली बो सारे लम्हें कहा खो गये
जंहा प्यार से मम्मी डाटा करती थी,आज उसी घर के हम मेहमान हो गये...
लाख करली कोशिश मेंने ये यादे भुलायी ना जाती हैं
कभी कभी तो लगता है की बो गलियां फिर से मुझे बुलाती हैं.....
लड़की पराया धन होती हैं ये लोग कहते जाते हैं
और कहने बलों ग़ौर से सुनो लड़के भी पराये हो जाते हैं
बंजर पड़ा हो इसका मतलब हर मैदान समसान नहीं,
किसी-किसी ने ठीक कहा है लड़का होना आसान नहीं.....
विश्वास भट्ट.... 🖋️🖋️