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1 किताब
घुटनों के बल चलते चलते,ना जाने कब हम खड़े हो गये बोझ किताबों का उठाते उठाते,ना जाने कब हम बड़े हो गये जो था साथ खेलता,साथ बैठता,बो दोस्त मेरा छूट गयाफिर धीरे से आयी आवाज कहीं से,की बचपन तेरा