मैं लिखता हूँ बेहिसाब शब्द छापता हूँ पढ़ता कोई नही है ।
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मैं आदित्य पुंडीर चाय पत्ती का व्यापार करता हूँ gst भी देता हूँ सब कुछ किया बेच भी रहा हूँ मेहनत से बेच रहा हूँ । मुझे व्यापार बढ़ाने के लिए लोन चाहिए सरकार की योजना का लाभ चाहिए लेकिन मैंने तो हर चीज़
आदमी एक कोल्हू के बैल के जैसे पूरे महीने पैसा कमाता है लेकिन जब खर्चा उसके घर का उसका ही कच्छा फाड़ने लगे । तो वो सोचता है मेरी गलती है या सरकार की गलती । कभी सोचता है शायद में संतुष्ट नही हूँ जो जरूरत