आदमी एक कोल्हू के बैल के जैसे पूरे महीने पैसा कमाता है लेकिन जब खर्चा उसके घर का उसका ही कच्छा फाड़ने लगे । तो वो सोचता है मेरी गलती है या सरकार की गलती । कभी सोचता है शायद में संतुष्ट नही हूँ जो जरूरतों को पूरा नही कर पा रहा हूं । या शायद कम पढ़ा लिखा हूँ उसके मन मे असख्य सवाल गोते लगा रहे होते हैं फैक्ट्री की तनख्वाह उसकी पहले 8 हजार थी लेकिन मालिक की दया से बढ़ कर 5 बरस के बाद 12 हजार मिलते है 12 घंटे की शिफ्ट होती है 2 बच्चे हैं । अब तो याद भी नही है उसने नया जूता कब लिया था । आज सिलेंडर 1160 तक हो गया है तेल घी ने भी जैसे कसम खा रखी हो अब आसमान से उतरना ही नही है । स्कूल वालो ने भी शिक्षा का व्यापार से बना दिया हौ तो अब सरकारी स्कूल में बालको को पढ़ा रहा है मन की टीस सी रह जाती है बच्चे प्राइवेट में पढ़ाओ तो कहा से लाये इतना पैसा।
ऊपर से परिवार साथ रहता हैं कमरे का किराया जिसमे ही रसोई है 4000 । बुखार खांसी जुखाम में खुद ही डॉक्टर बन केमिस्ट से दवाई लाता है पर बच्चो की जिद के खिलौने जेब टटोल कर खरीद देता हैं । फिर सोचता है अम्मा बाबू जी भी तो बिना दाँत मंजन महंगे साबुन कपड़े दवाई सवाई सस्ती जिंदगी जीते थे । ख्याल आ जाता हैं कि टेलीविजन के प्रचार पर आने वाले प्रोडक्ट किसी ना किसी बहाने से घर मे घुस कर मेरी तनख्वाह को बीमार लाचार बना देते है। बड़े लोगो का धंदा हम गरीबो की जेबे भ्रामक विज्ञापन काट लेते है। पत्नी को समझाते हुए एक दिन कहता है ये चाल सबकी हमे मूर्ख बनाने की पिताजी को भी गर्मी लगती होगी लेकिन आज सबको कूलर चाहिए वो तो आँगन में चादर तान के सोते थे ।फिर सोचता है वक्त बदल रहा है मुझे भी बदलना पड़ेगा नही तो अब पिछड़ा समझेंगे ।रोज ऐसे ख्यालो में अपने 12000 को गालियां देता है । फिर यकायक सोचता है अगर हम जरूरत ही कम करले तो । लेकिन पत्नी बच्चो के आगे हार जाता है