मेरे कालेज में सुबह सुबह सभी को दिए गए कार्यो का मुआयना करते समय अतिथियों की यादी भी देखना हुआ..
वाराणसी में जो वार्षिकोत्सव मिलन समारोह में 1964 से आज तक के डिप्लोमा के सिनियर्स एवं जुनियर पढाई के अनुसार और सरकारी नौकरी एवं अपने निजी व्यवसाय के अनुसार मिलने आ पहुंचे..
इस कोलेज से पढ़ा छात्र और अब पढाने के पद पर पहुँच चुका मै पुराना छात्र और वर्तमान प्राध्यापक आज का कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में उद्घोषक की जिम्मेदारी निभाने दस दिन से तैयारी में लगा था.
सभी पधारे महेमान और अपने दोस्तों के लिए अच्छे विशेषणों से नवाजा जा रहा मै यकायक मुख्य महेमान के नाम पुकारने के समय पता नहीं क्यों बारबार नर्वस हो जाता था.. फिर भी हिम्मत करके तारीफ के पूल बांधे जा रहा था.. रुकता तो रो देता.. इतनी तारीफ के बाद भी मेरे से नजर से नज़र वो नही मिला पा रहे थे..
देश में भ्रष्टाचार के लंबी सलाह देते समय एक भी बार मेरी तरफ देखा ही नहीं.. बस बोलते गया अंतमे जब तालियाँ बजी तो मेरी तंद्रा तुटी.. आँखों में आंसू ईतने बहे की उसके पाप और शर्म सब बह गया.. बचा तो सिर्फ मेरे वृद्ध पिताजी के कर्जा और गिरवी रखा हमारा घर जो उस निदेशक को मेरी नोकरी हेतु 5लाख देने पडे थे.. और मेरी जोब नोकरी लगाने पर सब का तालीयाँ भरे अभिवादन से उनके गले में एक और फुल माला पडी बस धागा और सुजा सुई की चूभन सिर्फ मुझे ही महेसूस हुई.. लेकिन तालियों की गुँज में सब शुन्न खामोशी भी शर्मा गई.. भ्रष्टाचार के नारे तभी गुंजे थे.. और आज भी शायद आपको सुनाई दे..दिखाई दे..
वजुभाई परमार 9898057584