रात अपने चरम पर थी सारी दुनिया रात की खामोशी मे खुद को मिलाकर नींद के आगोश मे सिमटी हुई खायबो की चादर बुन रही थी पर कही दूर कोई ऐसा व्यक्ति भी था जिसे इस रात का सन्नाटा एक अजगर की फुसकर जैसे महसूस हो रहा हो जैसे ये रात उसे डसने आई हो और आज उसे इन समाज के बंधन से मुक्त करा कर अपने अंदर समा लेगी आज दिल को भी यही चाहिए ये रात इस तरह खुद मे मिला ले की अब कोई किरण छू न पाएं इस रात की गहराई में उतर कर मेरी सांस मद मद हो कर मेरी आत्मा को आजाद कर दे और मेरी आत्मा हर बंधन से मुक्त हो कर इस आसमान में पंछी की तरह उड़ती हुई दूर कहीं दूर बहुत दूर निकल जाएं जहां कोई बन्धन ना हो जहां कोई अपना, अपना हो कर पराए की तरह ना हो जहां खाबो पर कोई रोक ना हो जहां अरमानों को पंख लगे हो और कल का डर ना हो कर बस आज का सुकुन हो अपनी आखों में अपने खायोबो को लिए आज एक रात और बीत गई न जाने कितनी राते इस खालीपन में सिमट जाएगी और कब तक ये सिलसिला जारी रहेगा कब इसका अंत होगा...