एक पौश कॉलोनी का दृश्य है | कॉलोनी में करीब 500 मकान हैं | यह कहानी कोरोना काल के भीषण दौर की त्रासदी को बयाँ करती है | कॉलोनी में मुख्य रूप से पांच परिवारों पर कोरोना का विशेष असर होता है | इनमे मिश्रा जी, वर्मा जी, गुप्ता जी, चौहान जी और अंसारी जी शामिल हैं | इन सभी परिवारों में एक बात जो सभी को व्यथित करती है कि इन सभी परिवारों के बच्चों ने कोरोना की इस भीषण त्रासदी में अपने – अपने माता – पिता को खोया था | सभी बच्चे अपने भविष्य को लेकर चिंतित थे |
इस त्रासदी के क्षणों में समाज के ठेकेदारों ने इनका साथ नहीं दिया | साथ दिया तो केवल कॉलोनी की परिवार कल्याण समिति ने | इन सभी बच्चों की पढ़ाई एवं देखभाल का जिम्मा समिति ने लिया और इन बच्चों की पढ़ाई बिना किसी व्यवधान के होने लगी | ये सभी बच्चे अपने अंतिम वर्ष की पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश में महानगर की ओर चले गए | परिवार कल्याण समिति को उन्होंने अपने – अपने मकान किराए से उठाने को कह दिया और उस किराए के पैसे को परिवार कल्याण समिति के फण्ड में डालने को कह दिया ताकि उस पैसे से दूसरे लोगों का भला हो सके |
कोरोना को आये डेढ़ वर्ष बीत चुका था | बच्चे महानगर में अपने पैर जमा चुके थे | अच्छी आमदनी थी सभी की | अचानक एक दिन सभी पाँचों बच्चे अपनी कॉलोनी में आते हैं सभी उनकी तरक्की और नौकरी से खुश होते हैं | परिवार कल्याण समिति उन सभी बच्चों का अभिनन्दन समारोह आयोजित करती है और उन्हें सम्मानित करती है | सम्मान समारोह के अंत में सभी बच्चे परिवार कल्याण समिति के सहयोग की भूरि – भूरि प्रशंसा करते हैं और एक घोषणा करते हैं कि उनकी वार्षिक आय का बीस प्रतिशत वे हर वर्ष परिवार कल्याण समिति को दिया करेंगे ताकि जरूरतमंदों की मदद हो सके साथ ही वे परिवार कल्याण समिति को पचास लाख रुपये दान स्वरूप देते हैं जिससे एक छोटे से आश्रम का निर्माण किया जा सके | और अपने मकान परिवार कल्याण समिति के नाम कर देते हैं ताकि परिवार कल्याण समिति को एक निश्चित आमदनी प्राप्त हो सके |
सभी एक ध्वनि से तालियाँ बजाते हैं और बच्चों के इस नेक काम की सराहना करते हैं | बच्चे फिर से अपने – अपने गंतव्य की ओर चल देते हैं |
अनिल कुमार गुप्ता " अंजुम
डेराबस्सी पंजाब
मौलिक कहानी
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