पार्वती व प्रकृति का रिश्ता (*कहानी प्रथम क़िश्त *)
आज मैं जल संसाधन अधिकारी के बतौर कुछ विशेष बातों का अवलोकन करने ग्वालियर से 40 किमी दूर ग्राम मानपुर जा रहा हूं । आज के परिपेक्ष्य में ग्राम मानपुर में चारों तरफ़ हरियाली नज़र आती है । वहां धान की उपज आसपास के ग्रामों से बहुत ज्यादा होती है । वहां पशुपालन का काम उच्चस्तरीय है। जबकि दस वर्ष पूर्व यह गांव पूरी तरह से उजड़ गया था । आखिर ऐसा क्या बदलाव आया कि आज उजड़ा हुआ वह गांव सपंन्न्ता की गाथा गा रहा है ? क्या इस बदलाव पीछे वहां के निवासियों की मेहनत और इच्छा शक्ति है ,या कुछ और ? 10 वर्ष पूर्व वहां इतना सूखा पड़ा था कि ताल तलैया सूख गए थे । वहां के दो कुएं भी धूल मिट्टी से सराबोर हो गए थे । उस समय वहां के बाशिन्दों ने सैकड़ों बार प्रशासन से मदद की गुहार लगाई थी । प्रशासन हर दफ़ा कुछ स्थायी हल निकालने का आश्वासन देता रहा पर विशेष कुछ किया नहीं । एकाद बार पास के गांव से टैन्कर भर कर मानपुर में पानी भिजवा दिया और अपने काम की इतिश्री समझ लिया। जब मानपुर में पानी की कमी विकराल रूप धारण कर ली तो वहां के निवासी जो मूलत: महावत परिवार से आते थे , एक एक करके गांव छोड़कर आस पास के दूसरे गांवों में रहने चले गए। और रामपुर पूरी तरह से उजड़ गया। लेकिन कुछ सालों बाद ऐसा क्या हुआ कि वहां के एक घर में पानी का इतना भंडार मिला कि उसके आगे कई बड़े बड़े दरिया भी हार मानते नज़र आ रहे थे । ये कैसे हुआ इसी की जानकारी प्राप्त करने मैं ग्राम मानपुर जा रहा हूं ।
ठीक एक घंटे बाद मैं ग्राम मानपुर में उस घर के सामने खड़ा था जहां पानी का ऐसा अबाध श्रोत मिला जिससे समूचे गांव को भरपूर पानी मिलने लगा और उसी श्रोत के पानी से खेतों की सिंचाई भी मनमाफ़िक होने लगी । जिससे कारण दस वर्ष से उजड़ा हुआ मानपुर आज खुशहाली की गाथा लिख रहा है । उस घर के मुखिया साधूराम से मुलाकात के बात मैंने उन्हें अपने उनके घर आने का प्र्योजन बताया तो उन्होंने मेरा स्वागत करते हुए बैठाया । फिर अपने लड़के से कहकर मेरे लिए चाय बनवाई साथ ही बेसन के पकोड़े भी खिलवाए । उसके बाद मैंने अपनी बात रखी कि यह गांव तो लगभग उजड़ गया था पर आपका परिवार ही अकेला परिवार था जो इस गांव से हटक कहीं और नहीं गया । आप लोग पानी की कमी रहते हुए यहां से हटे क्यूं नहीं , क्या कोई खास कारण था ? फिर आगे ऐसा क्या हुआ कि आपके घर में पानी का ऐसा श्रोत मिल गया जो सारे गांव के पानी की ज़रूरत की पूर्ति कर देता है । इस बारे में विस्तार से बताएं ।
घर के मुखिया साधूराम की उम्र लगभग 70 बरस की लग रही थी । उन्हें आखों से कुछ कम दिखाई देता था । पर तन से वे हृष्ट पुष्ट थे । साथ ही उनकी आवाज़ भी बुलंद थी । मेरे सवालों के बाद साधूराम जी कुछ पल सोचते हुए रुके फिर एक लंबी सांस खींचकर कहने लगे । जब यहा पानी की कमी हो गई थी तो हर तरफ़ हाहाकर मच गया था । गांव वालों ने आपस में मिलकर चार पांच जगहों पर कुंआ खुदवाया पर किसी भी स्थान पर पानी का नामोनिशान नहीं मिला । वहीं यहां से 5 किमी दूर एक गांव रामपुर के हर कुंए में भरपूर पानी उपलब्ध था । इसके अलावा हमारे गांव के बाहरी हिस्से में एक बड़ा सा गड्ढा था । उस गड्ढें में भी हर समय पानी भरा रहता था । यह गड्ढा भी उसी दिशा में है जिधर रामपुर स्थित है। उस गड्ढे से जब भी 5 बाल्टी पानी निकाला जाता तो वह खाली हो जाता पर आधे घंटे के अंदर वह फिर उसी तरह से भर जाता था । लोगों को पानी की अपनी ज़रूरत उसी गड्ढे से पूरी करनी पड़ती थी । जिसके लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी । साथ ही पानी जैसी चीज़ के लिए बहुत ज्यादा समय व्यतीत हो जाता था । अत: धीरे धीरे लोग गांव छोड़कर दूसए गांव जाने लगे और गांव खाली होने लगा । इस तरह कुछ समय के बाद इस गांव में मेरा ही परिवार अकेला परिवार रह गया । हमारा परिवार भी इस गांव को छोड़कर रामपुर जाना चाहता था पर हमारे सामने एक समस्या थी । हमारे पास एक हथनी थी , जो उस समय गर्भवति थी । जिसका नाम हमने दिया था पार्वती। वह कभी बच्चे को जन्म दे सकती थी। पार्वती उन दिनों दिन भर बैठे या लेटे रहती थी । उसे कहीं ले जाने का हम प्रयास करते तो वह मना कर देती थी । वह हिलने डुलने से भी अड़ जाती थी । जब हम लोग और ज़ोर लगाते तो वह चिंघाड़ने लगती । उसे शायद इस बात का डर रहा होगा कि मैं ज्यादा चलूंगी फिरूंगी तो बच्चे को नुकसान हो सकता है । अत: “ पार्वती” की वजह से हमें गांव में ही रुकना पड़ा ।
( क्रमशः)